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एकादशी व्रत: चावल का सेवन क्यों है वर्जित?

एकादशी व्रत का महत्व और चावल के सेवन के पीछे की पौराणिक कथा को जानें। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और इसके नियमों का पालन करना आवश्यक है। जानें क्यों एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित है और इसके पीछे की धार्मिक मान्यताएँ।
 

एकादशी व्रत का महत्व


एकादशी व्रत


एकादशी व्रत 2025: सनातन धर्म में एकादशी तिथि को अत्यंत पवित्र माना जाता है। वर्ष में कुल 24 एकादशी व्रत होते हैं, जो भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सुख और समृद्धि बनी रहती है। हर महीने की शुक्ल और कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर यह व्रत रखा जाता है।


इस महीने 15 तारीख को उत्पन्ना एकादशी का व्रत मनाया जाएगा, जो मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर पड़ता है। एकादशी व्रत के कुछ विशेष नियम हैं, जिनका पालन करना आवश्यक है। एकादशी पर चावल का सेवन मांस और खून के सेवन के समान माना जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। आइए जानते हैं इस कथा के बारे में।


पौराणिक कथा का सारांश


कथा के अनुसार, प्राचीन काल में महर्षि मेधा ने एक यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ के दौरान एक भिक्षुक आए, जिन्हें महर्षि ने अपमानित किया। इस अपमान के कारण माता दुर्गा महर्षि से नाराज हो गईं। महर्षि ने माता को प्रसन्न करने के लिए अपना शरीर त्याग दिया, और उनके शरीर के अंश धरती में समा गए।


महर्षि मेधा का पुनर्जन्म


कुछ समय बाद, महर्षि मेधा चावल और जौ के रूप में पुनर्जन्म लेते हैं। उनके इस त्याग को देखकर माता दुर्गा प्रसन्न हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया कि उनके अंग भविष्य में अन्न के रूप में उगेंगे। इस मान्यता के अनुसार, एकादशी के दिन महर्षि मेधा के अंग धरती में समाए थे।


इसलिए, एकादशी के दिन चावल का सेवन करना वर्जित माना जाता है। इसके अलावा, चावल में अधिक जल सामग्री होती है, जिससे चंद्रमा के प्रभाव के कारण मन चंचल हो सकता है, और व्रत तथा पूजा में ध्यान केंद्रित करना कठिन हो जाता है।


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