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ऋषि पंचमी 2025: महत्व और पूजा विधि

ऋषि पंचमी 2025 का पर्व भाद्रपद मास में मनाया जाएगा, जो विशेष रूप से महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है। इस दिन उपवास और पूजा करने से पुराने पापों से मुक्ति मिलती है। जानें इस दिन का सही पूजा समय, धार्मिक महत्व और पूजा विधि के बारे में।
 

ऋषि पंचमी का महत्व


ऋषि पंचमी 2025: भाद्रपद मास में आने वाली ऋषि पंचमी एक विशेष धार्मिक तिथि है, जिसे श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह दिन उन सात महान ऋषियों को समर्पित है, जिन्होंने जीवन के सही मार्ग को दिखाने वाले नियम बनाए। इस दिन उपवास और पूजा करने से पुराने पापों से मुक्ति मिलती है, खासकर उन गलतियों से जो अनजाने में की जाती हैं। भोपाल के ज्योतिषी और वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा इस विषय पर और जानकारी दे रहे हैं.


ऋषि पंचमी कब मनाई जाएगी?

ऋषि पंचमी का उत्सव हर साल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। 2025 में यह तिथि 27 अगस्त को दोपहर 3:44 बजे शुरू होकर 28 अगस्त को शाम 5:56 बजे समाप्त होगी। इस आधार पर, ऋषि पंचमी का उत्सव 28 अगस्त 2025, गुरुवार को मनाया जाएगा.


पूजा का सही समय

इस दिन पूजा का सबसे शुभ समय सुबह 11:05 बजे से 1:39 बजे तक रहेगा। इस अवधि में पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं और यह मान्यता है कि इच्छाएं पूरी होती हैं.


ऋषि पंचमी का धार्मिक महत्व

यह पर्व महिलाओं के जीवन में विशेष भूमिका निभाता है। माना जाता है कि यह उपवास उन नियमों से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है जो मासिक धर्म के दौरान जानबूझकर या अनजाने में टूटते हैं। इसके साथ ही, यह आत्म-शुद्धि का एक माध्यम भी माना जाता है। ऋषियों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए उपवास और पूजा करने से जीवन में संतुलन और सकारात्मकता आती है.

गंगा स्नान को भी इस दिन विशेष महत्व दिया गया है। यदि गंगा में स्नान करना संभव न हो, तो घर पर गंगाजल मिलाकर स्नान किया जा सकता है, जिससे मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता का अनुभव होता है.


ऋषि पंचमी की पूजा कैसे करें?

- सुबह जल्दी उठें, स्नान करें और पूजा की तैयारी करें.

- घर के एक शांत स्थान पर एक साफ लाल या पीला कपड़ा बिछाएं.

- उस पर सप्तऋषियों की तस्वीर या प्रतीक स्थापित करें.

- एक कलश में गंगाजल भरें और दीप जलाएं.

- पूजा में फूल, फल, घी, पंचामृत आदि अर्पित करें.

- सप्तऋषियों को जल अर्पित करें और धूप जलाएं.

- फिर मंत्रों का जाप करें और अंत में अपने पिछले गलतियों के लिए क्षमा प्रार्थना करें.

- पूजा के बाद प्रसाद सभी को बांटें और परिवार के बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लें.


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