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उमर अब्दुल्ला का एक साल: जम्मू कश्मीर में वादे अधूरे

जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अपने कार्यकाल का एक वर्ष पूरा किया है, लेकिन उनके द्वारा किए गए वादे अब तक अधूरे हैं। उनकी पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर कार्रवाई करने का वादा किया था, लेकिन आलोचना का सामना कर रही है। जानें उनके कार्यकाल की उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ, और कैसे उन्होंने राजनीतिक मोर्चे पर विफलता स्वीकार की।
 

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का कार्यकाल

जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने बृहस्पतिवार को अपने कार्यकाल का एक वर्ष पूरा किया। हालांकि, राज्य का दर्जा पुनर्स्थापित करने का उनका वादा अब तक पूरा नहीं हुआ है, जो उनके प्रमुख चुनावी वादों में से एक था।


अब्दुल्ला ने 16 अक्टूबर 2022 को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। उनकी पार्टी ने विधानसभा चुनाव में एक बड़ी जीत हासिल की, जो लगभग एक दशक में उनकी पहली जीत थी।


हालांकि, अब्दुल्ला की पार्टी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, के अधिकांश वादे अब भी अधूरे हैं।


घोषणापत्र के वादे

अपने घोषणापत्र ‘गरिमा, पहचान और विकास’ में, पार्टी ने 2000 में जम्मू कश्मीर विधानसभा द्वारा पारित स्वायत्तता प्रस्ताव के पूर्ण कार्यान्वयन, अनुच्छेद 370 और 35ए के संबंध में यथास्थिति बहाल करने और पांच अगस्त, 2019 से पहले की स्थिति के अनुसार राज्य का दर्जा बहाल करने का वादा किया।


पार्टी ने यह भी कहा था कि वह जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर सरकार के कामकाज के नियम, 2019 को फिर से तैयार करने का प्रयास करेगी।


वादों की पूर्ति में विफलता

घोषणापत्र में यह भी कहा गया था कि पार्टी जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को प्रभावित करने वाले कानूनों को संशोधित, अमान्य और निरस्त करने का प्रयास करेगी और लोगों के भूमि एवं रोजगार के अधिकारों की रक्षा करेगी।


हालांकि, पहले वर्ष में नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार इन वादों को पूरा करने में सफल नहीं हो पाई है।


सरकार को घाटी में विपक्षी दलों और अपने ही खेमे से आलोचना का सामना करना पड़ रहा है, जिन्होंने उस पर ‘कुछ नहीं करने’ और ‘केवल केंद्र और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को खुश करने’ का आरोप लगाया है।


राजनीतिक विफलता की स्वीकार्यता

श्रीनगर से पार्टी के लोकसभा सदस्य रूहुल्लाह मेहदी ने स्वीकार किया कि सरकार राजनीतिक मोर्चे पर विफल रही है।


उन्होंने कहा, ‘राजनीतिक मोर्चे पर जो कुछ भी किया जाना चाहिए था, वह नहीं हुआ। इरादा दिखाने की जरूरत थी लेकिन मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि अब तक वह नहीं दिखाया गया है।’


सकारात्मक कदम

हालांकि, सत्तारूढ़ दल का कहना है कि सीमित शक्तियों के बावजूद उसने जनता का जीवन आसान बनाया है।


पार्टी ने गरीब दुल्हनों के लिए विवाह सहायता निधि को 50,000 रुपये से बढ़ाकर 75,000 रुपये कर दिया है, सभी जिलों में महिलाओं के लिए मुफ्त बस सेवा का विस्तार किया है, और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को मुफ्त राशन दिया है।


चुनौतियाँ और आतंकवादी हमले

मुख्यमंत्री अक्सर अपनी सरकार की सीमाओं के लिए निर्वाचित सरकार और उपराज्यपाल के बीच शक्तियों के विभाजन को जिम्मेदार ठहराते हैं।


पिछले एक साल में सरकार के सामने आई कई चुनौतियां अब भी बनी हुई हैं। पहलगाम में 22 अप्रैल को हुआ आतंकवादी हमला जम्मू कश्मीर की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका था और इसने घाटी में पर्यटन को बहुत नुकसान पहुंचाया।


मुख्यमंत्री का स्वतंत्रता दिवस भाषण

इससे पहले अगस्त में श्रीनगर में अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण के दौरान, उमर अब्दुल्ला ने एक गंभीर बात कही।


बख्शी स्टेडियम में एक आधिकारिक समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘पिछली बार जब मैं यहाँ खड़ा था, तब मैं एक राज्य का मुख्यमंत्री था। हमारे पास एक विधानसभा थी जो निर्णय लेती थी, और एक मंत्रिमंडल था जो उन्हें लागू करता था।’


उन्होंने आगे कहा, ‘आज, मैं एक केंद्र शासित प्रदेश का मुख्यमंत्री हूँ। मंत्रिमंडल के निर्णय पारित होते हैं, लेकिन कई स्वीकृत नहीं होते। कुछ फाइलें वापस नहीं आतीं। कुछ गायब हो जाती हैं।’