उपेंद्र कुशवाहा की पारिवारिक राजनीति: बहू को पद दिलाने की कोशिश
उपेंद्र कुशवाहा की नई राजनीतिक योजना
उपेंद्र कुशवाहा, दीपक प्रकाश और उनकी पत्नी
बिहार में एनडीए के सहयोगी दलों में से एक राष्ट्रीय लोक मोर्चा के नेता और राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा एक बार फिर चर्चा में हैं। राजनीतिक हलकों में यह बात फैल रही है कि उन्होंने अपने बेटे दीपक प्रकाश को मंत्री बनवाने के बाद अब अपनी बहू को भी किसी पद पर नियुक्त करने की योजना बनाई है। इस दिशा में वे सक्रियता से काम कर रहे हैं।
राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा एक बार फिर अपने पारिवारिक राजनीतिक कदमों के लिए सुर्खियों में हैं। बेटे को नीतीश कुमार की कैबिनेट में मंत्री बनाने के बाद, पार्टी के चार में से तीन विधायकों ने बागी रुख अपनाया है, लेकिन कुशवाहा पर इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा है। अब खबर है कि वे अपनी बहू साक्षी मिश्रा को भी सत्ता में स्थान दिलाने की कोशिश कर रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार, उपेंद्र कुशवाहा अपनी बहू साक्षी मिश्रा को राज्य नागरिक परिषद में उपाध्यक्ष बनाने की योजना बना रहे हैं। यह पद मधुबनी से विधायक बने माधव आनंद के कारण खाली हुआ है। बताया जा रहा है कि इस संबंध में साक्षी मिश्रा के नाम का प्रस्ताव भारतीय जनता पार्टी को भेजा गया है।
कैसे बहू को मिलेगा पद?
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राज्य नागरिक परिषद का गठन किया गया था, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होते हैं। परिषद में दो उपाध्यक्ष बनाए गए थे, जिनमें से एक पद उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव माधव आनंद को मिला था। हालिया विधानसभा चुनाव में कुशवाहा ने माधव आनंद को मधुबनी सीट से उम्मीदवार बनाया था और उनकी जीत के बाद परिषद के उपाध्यक्ष का पद रिक्त हो गया।
अब इसी खाली पद पर कुशवाहा अपनी बहू को नियुक्त कराने की कोशिश कर रहे हैं। पार्टी के एक बागी विधायक ने दावा किया है कि यह प्रस्ताव न केवल तैयार किया गया है, बल्कि औपचारिक रूप से बीजेपी तक पहुंचा भी दिया गया है।
पार्टी की आंतरिक चुनौतियाँ
यह ध्यान देने योग्य है कि राष्ट्रीय लोक मोर्चा इस समय गंभीर आंतरिक संकट का सामना कर रहा है। पार्टी के तीन विधायकों ने नेतृत्व के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल दिया है और किसी भी समय बड़ी टूट की आशंका जताई जा रही है। ऐसे माहौल में परिवार के सदस्यों को लगातार राजनीतिक पदों पर स्थापित करने की कोशिशें पार्टी में असंतोष को और बढ़ा सकती हैं।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि उपेंद्र कुशवाहा की यह रणनीति उन्हें सत्ता के गलियारों में कितनी मजबूती दिलाती है या फिर पहले से जूझ रही पार्टी के लिए यह कदम और भारी साबित होता है।