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उपराष्ट्रपति धनखड़ का इस्तीफा: राजनीतिक हलचल और महाभियोग प्रस्ताव

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे ने राजनीतिक हलचल मचा दी है। राष्ट्रपति द्वारा इस्तीफे की स्वीकृति और प्रधानमंत्री की शुभकामनाएं इस घटनाक्रम को और महत्वपूर्ण बनाती हैं। इसके साथ ही, जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव भी चर्चा का विषय बना हुआ है। जानें इस राजनीतिक परिदृश्य में क्या हो रहा है और इसके पीछे की रणनीतियाँ क्या हैं।
 

धनखड़ का इस्तीफा और उसके पीछे की कहानी

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे की खबर ने सभी को चौंका दिया है। राष्ट्रपति ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है, और प्रधानमंत्री ने उनके स्वास्थ्य के लिए शुभकामनाएं दी हैं। हालांकि, यह अचानक का निर्णय नहीं था, क्योंकि इसके संकेत पिछले कुछ दिनों से मिल रहे थे। हाल ही में, 20 जुलाई को, धनखड़ ने अपनी पत्नी के जन्मदिन पर एक पार्टी का आयोजन किया, जिसमें 800 लोग शामिल हुए। यह एक तरह से विदाई पार्टी की तरह प्रतीत हो रही थी। इस अवसर पर, उन्होंने राज्यसभा के सभी कर्मचारियों को भोजन पर आमंत्रित किया, जो कि उनके मन में चल रही किसी बात का संकेत था।


महाभियोग प्रस्ताव का मामला

150 सदस्यों ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग लाने की कोशिश विपक्ष काफी समय से कर रहा है। जस्टिस वर्मा के साथ ही लाने की कोशिश की जा रही है लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं है। सरकार नहीं चाहती कि ऐसा कोई महाभियोग जस्टिस यादव के खिलाफ आए क्योंकि ये कोई मामला बनता नहीं है। एक तो ये मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने है। वो स्पष्टीकरण दे चुके हैं। अगर कोई एक्शन लेना है तो वो सुप्रीम कोर्ट लेगा। उन पर महाभियोग का कोई मामला नहीं बनता है। विपक्ष संतुलन के लिए और सनातन धर्म के पक्ष में बोला था तो उसका विरोध करना लाजिमी है। आपको याद होगा कि जस्टिस यादव ने जो कुछ भी बोला था वो एक निजी कार्यक्रम में बोला था न कि अदालत में कहा था।


जस्टिस शेखर यादव का विवाद

क्या था जस्टिस शेखर यादव का मामला?

पिछले साल दिसंबर में विपक्षी सांसदों ने राज्यसभा में जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग का नोटिस पेश किया था। दावा किया गया कि उन्होंने पिछले साल एक सभा में कथित तौर पर नफरत भरा भाषण दिया। विहिप के कानूनी प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में समान नागरिक संहिता पर बोलते हुए जस्टिस यादव ने विवादास्पद टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत बहुसंख्यक आबादी की इच्छा के अनुसार काम करेगा। उन्होंने चरमपंथियों को “कठमुल्ला” कहा और सुझाव दिया कि देश को उनके प्रति सतर्क रहना चाहिए। जस्टिस यादव वर्तमान में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज हैं। 16 अप्रैल, 1964 को उनका जन्म हुआ। कार्यक्रम में उनकी कही गई बातों के चलते राज्यसभा के 54 सांसदों ने जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग का नोटिस दिया था।


महाभियोग प्रस्ताव की प्रक्रिया

जज के खिलाफ महाभियोग का नोटिस

जस्टिस यादव के खिलाफ राज्यसभा में 54 सांसदों ने महाभियोग का नोटिस दिया था, इसे मंजूर करने के लिए 50 सांसदों के हस्ताक्षर सही होने चाहिए थे, लेकिन 44 सांसदों के हस्ताक्षरों का ही वेरिफिकेशन हुआ। न्यायाधीशों के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव के लिए राज्यसभा सचिवालय के तय प्रोटोकॉल के मुताबिक इस प्रस्ताव के साथ जमा 55 सांसदों के हस्ताक्षरों की विस्तृत जांच शुरू गई।


धनखड़ की भूमिका

क्या करने वाले थे धनखड़?

जस्टिस शेखर यादव के जरिए विपक्ष एक नैरेटिव खड़ा करना चाहता था और सूत्रों की माने तो इसमें जगदीप धनखड़ मददगार बन रहे थे। सरकार को ये विश्वास हो गया था कि मंगलवार को दोपहर 1 बजे बिजनेस एडवाइजरी की मीटिंग के दौरान वो जस्टिस शेखर यादव के महाभियोग वाले नोटिस को स्वीकार करने वाले हैं। ऐसे में एक संवैधानिक संकट जैसी स्थिति पैदा हो जाती। सरकार जो मोशन नहीं चाहती वो मोशन आ जाता। विपक्ष की इस रणनीति में उपराष्ट्रपति का शामिल हो जाना सरकार के लिए बड़ी चिंता की बात थी।