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उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने फर्जी वारंट घोटाले में बैंकों और टेलीकॉम कंपनियों को शामिल किया

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक गंभीर घोटाले का संज्ञान लिया है, जिसमें न्यायाधीशों और पुलिस अधिकारियों के नाम से फर्जी गैर जमानती वारंट जारी किए गए थे। इस मामले में भारतीय रिजर्व बैंक, निजी बैंकों और दूरसंचार कंपनियों को भी शामिल किया गया है। याचिकाकर्ता सुरेंद्र कुमार ने बताया कि उन्हें फर्जी कॉल के जरिए पैसे जमा करने के लिए कहा गया था। अदालत ने इस मामले को जनहित याचिका में परिवर्तित कर दिया है। जानें इस घोटाले की पूरी कहानी और अदालत के निर्देशों के बारे में।
 

फर्जी गैर जमानती वारंट का मामला

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक गंभीर घोटाले का संज्ञान लिया है, जिसमें न्यायाधीशों और पुलिस अधिकारियों के नाम से फर्जी गैर जमानती वारंट (एनबीडब्ल्यू) जारी किए गए थे। अदालत ने इस मामले में भारतीय रिजर्व बैंक, संबंधित निजी बैंकों और दूरसंचार कंपनियों को भी पक्षकार बनाने का आदेश दिया है।


इस घोटाले में धन की हेराफेरी चार बैंक खातों के माध्यम से की गई।


हरिद्वार के निवासी सुरेंद्र कुमार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने कहा कि यह मामला केवल आम जनता को धोखा देने का नहीं है, बल्कि न्यायपालिका और पुलिस के नामों का दुरुपयोग करके प्रणाली की विश्वसनीयता को भी चुनौती देता है।


उच्च न्यायालय ने इस याचिका को जनहित याचिका में परिवर्तित कर दिया। कुमार ने बताया कि उन्हें एक महीने पहले दो अलग-अलग नंबरों से फोन आए, जिसमें कहा गया कि देहरादून के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश की अदालत से एक एनबीडब्ल्यू जारी हुआ है और उन्हें तुरंत 30 हजार रुपये जमा करने की आवश्यकता है।


इस धनराशि के लिए चार अलग-अलग स्कैनर कोड भी दिए गए थे। याचिकाकर्ता ने हरिद्वार पुलिस को इस फर्जी कॉल और स्कैनर कोड के बारे में सूचित किया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।


याचिकाकर्ता की वकील प्रभा नैथानी ने कहा कि यह एनबीडब्ल्यू पूरी तरह से फर्जी है, क्योंकि किसी अदालत में ऐसा कोई मामला लंबित नहीं है और न ही ऐसा कोई न्यायाधीश हरिद्वार या देहरादून में मौजूद है।


इन फर्जी एनबीडब्ल्यू के माध्यम से लोगों को डराया गया और क्यूआर कोड के जरिए डिजिटल भुगतान करने के लिए मजबूर किया गया। उच्च न्यायालय ने इस घोटाले को गंभीर मानते हुए कहा कि इसमें निजी बैंकों की भी मिलीभगत हो सकती है, क्योंकि धोखाधड़ी वाले सभी खाते निजी बैंकों के हैं।