उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण राजनीति: 32 साल का वनवास और भविष्य की संभावनाएं
ब्राह्मणों का राजनीतिक इतिहास
उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण समाज का प्रभाव लंबे समय तक रहा है। नारायण दत्त तिवारी के बाद से, इस समुदाय से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना है। पिछले तीन दशकों में, ब्राह्मण समाज केवल एक वोट बैंक बनकर रह गया है। हाल ही में, बीजेपी के ब्राह्मण विधायकों की बैठक ने राजनीतिक चर्चाओं को फिर से जीवित कर दिया है।
बैठक का आयोजन
23 दिसंबर को लखनऊ में कुशीनगर के बीजेपी विधायक पंचानंद पाठक के आवास पर ब्राह्मण विधायकों की एक बैठक हुई, जिसमें 40 से अधिक विधायकों ने भाग लिया। इस बैठक के बाद, ब्राह्मण राजनीति पर चर्चा तेज हो गई। यूपी बीजेपी के नए अध्यक्ष पंकज चौधरी ने इस बैठक पर चिंता जताई और कहा कि ऐसी बैठकें पार्टी के संविधान के खिलाफ हैं।
मुख्यमंत्रियों की जातीय पृष्ठभूमि
उत्तर प्रदेश में आजादी के बाद से 21 मुख्यमंत्री बने हैं, जिनमें से 6 ब्राह्मण हैं। इसके अलावा, 5 ठाकुर, 3 यादव, और 3 वैश्य मुख्यमंत्री रहे हैं। मायावती दलित समाज से एकमात्र मुख्यमंत्री हैं।
ब्राह्मणों का राजनीतिक वर्चस्व
1989 तक, ब्राह्मणों का राजनीतिक वर्चस्व रहा, जिसमें गोविंद वल्लभ पंत, सुचेता कृपलानी, और नारायण दत्त तिवारी जैसे नेता शामिल थे। इनका शासन लगभग 23 वर्षों तक चला। इसके बाद, ठाकुर और यादव समाज के नेताओं ने सत्ता संभाली।
ब्राह्मणों का वर्तमान स्थिति
मंडल और कमंडल की राजनीति ने ब्राह्मणों को हाशिए पर धकेल दिया है। पिछले 32 वर्षों में, ब्राह्मण समाज से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना है। बीजेपी ने सत्ता में आने के बाद ठाकुर और अन्य जातियों को मौका दिया है, जिससे ब्राह्मण समाज में असंतोष बढ़ रहा है।
भविष्य की संभावनाएं
ब्राह्मण समाज अब अपनी राजनीतिक स्थिति को लेकर चिंतित है और बैठकें आयोजित कर रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वे भविष्य में सत्ता में अपनी भागीदारी को बढ़ा पाएंगे।