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उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और सपा के बीच बढ़ती दूरियां: इमरान मसूद का बयान

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से कांग्रेस सांसद इमरान मसूद के बयान ने राजनीतिक तापमान को बढ़ा दिया है। उन्होंने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए राहुल गांधी को विकल्प न मानने की बात कही। इस बयान के बाद प्रदेश की राजनीति में हलचल मच गई है। जानें कैसे बिहार चुनाव के परिणामों ने यूपी की विपक्षी राजनीति को प्रभावित किया है और कांग्रेस की चुनौतियाँ क्या हैं।
 

सहारनपुर में राजनीतिक हलचल


उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से कांग्रेस सांसद इमरान मसूद के हालिया बयान ने राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है। बिहार विधानसभा चुनाव के बाद विपक्षी दलों की चुनावी रणनीतियों पर सवाल उठने लगे हैं।


बिहार में विधानसभा चुनाव के पहले चरण की नामांकन प्रक्रिया समाप्त होने से एक दिन पहले तक गठबंधन की स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई थी। हालांकि, राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवारों को सिंबल बांट दिए थे, लेकिन यह तय नहीं हो पाया कि कौन चुनावी मैदान में उतरेगा। इस कारण 11 सीटें ऐसी रहीं, जहां राजद और वामपंथी दलों के उम्मीदवारों के सामने कांग्रेस के प्रत्याशी थे।


कांग्रेस ने इसे 'फ्रेंडली फाइट' का नाम दिया, लेकिन इसका लाभ एनडीए उम्मीदवारों को मिला। इसके बाद राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठने लगे।


बिहार चुनाव के परिणामों के बाद की स्थिति

बिहार चुनाव के परिणामों के बाद उत्तर प्रदेश की विपक्षी राजनीति में असंतोष बढ़ता दिख रहा है। वर्तमान में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभा रहे राहुल गांधी के स्थान पर अब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को विपक्ष का नेतृत्व करने की मांग उठने लगी है।


विपक्षी दलों का कहना है कि हिंदी पट्टी के बड़े राज्यों में कांग्रेस की भूमिका पर विचार होना चाहिए। बिहार चुनाव में कांग्रेस और राजद के बीच सीट शेयरिंग को लेकर उलझन बनी रही, जिससे यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि विपक्ष का चेहरा कौन है।


2017 के यूपी चुनाव में भी सपा-कांग्रेस गठबंधन के बीच सीटों पर विवाद हुआ था। अब आगामी चुनावों की तैयारी के बीच दोनों दलों के बीच की दूरी स्पष्ट हो रही है।


इमरान मसूद का विवादास्पद बयान

इमरान मसूद ने अखिलेश यादव के राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने के बयानों पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी का कोई विकल्प नहीं है और उनकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। उन्होंने अखिलेश यादव को 2027 के विधानसभा चुनाव पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी।


इस बयान के बाद प्रदेश की राजनीति में गर्माहट बढ़ गई है, हालांकि समाजवादी पार्टी के नेताओं ने अभी तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।


कांग्रेस की चुनौतियाँ

बिहार चुनाव में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन और गठबंधन में सहयोग बनाए रखने में असफलता के बाद कई सवाल उठने लगे हैं। विपक्षी गठबंधन यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड और दक्षिण के राज्यों में कांग्रेस को सहयोगी दलों के लिए सीटें छोड़ने की बात कर रहा है।


पश्चिम बंगाल में अगले साल चुनाव होने हैं, जहां तृणमूल कांग्रेस सत्ता में है और वह कांग्रेस के लिए कोई सीट छोड़ने को तैयार नहीं दिख रही है।


लोकसभा चुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस को झटका दिया था। ऐसे में अगर अखिलेश यादव यूपी में कांग्रेस को झटका देते हैं, तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 403 सदस्यीय विधानसभा में सपा कांग्रेस को 70 से 100 सीटें ऑफर कर सकती है, जबकि कांग्रेस की मांग 150 से 200 सीटों के बीच है।