उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन की भविष्यवाणी: बिहार चुनाव के परिणामों का प्रभाव
इंडिया गठबंधन की स्थिति पर उठते सवाल
राहुल गांधी और अखिलेश यादव.
बिहार चुनाव में हार के बाद, उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन के भविष्य को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच सीटों को लेकर विवाद ने 2027 विधानसभा चुनावों में गठबंधन की स्थिरता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि क्या वह मॉडल, जिसने 2024 के लोकसभा चुनावों में एनडीए के खिलाफ विपक्ष को मजबूती दी थी, बिहार में आए बदलावों से बच पाएगा। इन परिणामों ने न केवल सत्तारूढ़ भाजपा का आत्मविश्वास बढ़ाया है, बल्कि विपक्ष में भी नए संदेह और रणनीतिक पुनर्गणना को जन्म दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कांग्रेस को 'मुस्लिम लीग' और 'माओवादी' पार्टी कहने के साथ-साथ पार्टी में विभाजन की भविष्यवाणी ने इस बहस को और भी तेज कर दिया है। उनकी टिप्पणियों को कांग्रेस की आंतरिक स्थिति का आकलन और 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक विमर्श को आकार देने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
उत्तर प्रदेश के राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी की यह टिप्पणी राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में विचारधारा और रणनीति पर चर्चा को जन्म देगी।
भाजपा की चुनावी रणनीति
मगध के बाद अब अवध… यूपी चुनाव की तैयारी
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने विपक्ष पर हमला करते हुए कहा, 'मगध के बाद अब अवध,' यह संकेत देते हुए कि भाजपा बिहार के परिणामों को उत्तर प्रदेश में भी जीत की ओर अग्रसर मान रही है।
कांग्रेस, जिसने 2024 के लोकसभा चुनावों में सपा के साथ गठबंधन करके उत्तर प्रदेश में अपनी स्थिति को मजबूत किया था, अब सतर्क नजर आ रही है। वह 2027 में महागठबंधन के भविष्य पर स्पष्टता देने से बच रही है।
प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने कहा, 'उन्हें पहले खुद को देखना चाहिए। वह हमारी बातें क्यों दोहरा रहे हैं? वह कांग्रेस के बारे में क्या जानते हैं? हम अपनी पार्टी को बेहतर जानते हैं।'
सपा-कांग्रेस की साझेदारी की चुनौतियाँ
सपा-कांग्रेस की साझेदारी पर सवाल
हालांकि राजनीतिक दिखावे के बावजूद, एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या सपा-कांग्रेस की साझेदारी, जिसने 2024 में उत्तर प्रदेश की 80 में से 43 लोकसभा सीटें जीती थीं, 2027 तक बनी रहेगी, या चुनावों के नजदीक आते ही मतभेद उभरेंगे? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राज्य में विपक्ष का भविष्य इन दोनों दलों की एकता पर निर्भर करेगा।
सपा और कांग्रेस दोनों ही सार्वजनिक रूप से 'सब ठीक है' का दावा कर रहे हैं, लेकिन राजनीतिक इतिहास कुछ और ही कहता है। 2017 के विधानसभा चुनावों की हार के बाद, राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच गठबंधन टूट गया था। उस समय की यादें आज भी ताजा हैं।
फिर भी, 2024 के लोकसभा चुनावों ने उनके सहयोग को पुनर्जीवित किया और विपक्ष का मनोबल बढ़ाया। कई राजनीतिक टिप्पणीकारों ने 2027 में एक और कड़ी टक्कर की भविष्यवाणी की थी, लेकिन बिहार चुनाव के परिणामों ने अब उन भविष्यवाणियों पर सवाल खड़ा कर दिया है।
भाजपा की चुनावी तैयारी
बिहार चुनाव में जीत बनेगा यूपी में हथियार
सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्व मंत्री राजेंद्र चौधरी ने राजनीतिक झटके की आशंकाओं को खारिज किया। उन्होंने कहा, 'कोई झटका नहीं है। हम परिणामों की समीक्षा करेंगे। इंडिया गठबंधन मजबूत बना रहेगा।'
उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी बिहार के नतीजों से सीख लेगी और उत्तर प्रदेश में सभी राजनीतिक दलों की कड़ी निगरानी के साथ एसआईआर प्रक्रिया में कथित 'अनियमितताओं' को लेकर सतर्क है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 10 दिनों में 30 रैलियों को संबोधित किया और दरभंगा में एक रोड शो भी किया। उपमुख्यमंत्री मौर्य ने भी व्यापक प्रचार किया था।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने बिहार के नतीजों को प्रधानमंत्री मोदी के विकासोन्मुखी शासन और कल्याणकारी योजनाओं का प्रमाण बताते हुए कहा कि राजग 2027 में उत्तर प्रदेश में एक 'नया कीर्तिमान' बनाएगा।