उत्तर प्रदेश के विभाजन का इतिहास: पंडित नेहरू से मायावती तक
उत्तर प्रदेश का नामकरण और विभाजन की आवश्यकता
उत्तर प्रदेश को 24 जनवरी 1950 को नाम मिला, लेकिन इससे पहले यह राज्य ब्रिटिश शासन के दौरान चार अलग-अलग नामों से जाना जाता था। संविधान सभा में यूनाइटेड प्रॉविंस के नाम को बदलने की मांग की गई थी, लेकिन इसे अस्वीकार कर दिया गया। पंडित नेहरू ने राज्य के बड़े आकार के कारण इसके विभाजन का समर्थन किया, जबकि डॉक्टर आंबेडकर ने इसे तीन भागों में बांटने का सुझाव दिया।
मायावती ने 2011 में अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान विधानसभा से उत्तर प्रदेश को चार हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव पारित किया था। इस दिशा में कई आंदोलन भी हुए, विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में। अंततः, 9 नवंबर 2000 को केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश का विभाजन स्वीकार किया और उत्तरांचल (अब उत्तराखंड) राज्य का गठन किया।
उत्तर प्रदेश स्थापना दिवस का महत्व
संविधान सभा ने 24 जनवरी 1950 को यूनाइटेड प्रॉविंस का नाम बदलकर उत्तर प्रदेश रखा। 68 वर्षों बाद, योगी सरकार ने इस दिन को स्थापना दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की। यह विचार पहले महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल राम नायक ने प्रस्तुत किया था। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद, इस दिवस को मनाने की प्रक्रिया शुरू हुई।
ब्रिटिश राज के प्रतीकों से मुक्ति
आजादी के बाद, ब्रिटिश राज के प्रतीकों को हटाने की कोशिशें तेज हो गईं। राज्य की असेंबली ने यूनाइटेड प्रॉविंस के नाम को बदलने की आवश्यकता महसूस की। 1836 में इसे नॉर्थ वेस्टर्न प्रॉविंस कहा गया था, और इसके बाद कई बार नाम बदले गए। 1947 में कांग्रेस के विधायक चंद्रभाल ने राज्य के नाम बदलने का प्रस्ताव रखा, लेकिन इस पर लंबी बहस हुई।
राज्य सरकार ने आम सहमति बनाने की कोशिश की और लगभग 20 नामों के प्रस्ताव आए, लेकिन अंततः 'आर्यावर्त' नाम को अस्वीकार कर दिया गया और उत्तर प्रदेश नाम को स्वीकार किया गया।
उत्तर प्रदेश का राजनीतिक महत्व
उत्तर प्रदेश को देश का सबसे बड़ा राज्य माना जाता है और इसे केंद्र की सत्ता का रास्ता माना जाता है। यह राज्य अब तक आठ प्रधानमंत्री दे चुका है, जिसमें वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं। हालांकि, राज्य के बड़े आकार के कारण प्रशासन में कई चुनौतियाँ भी हैं।
पंडित नेहरू ने भी उत्तर प्रदेश के विभाजन की आवश्यकता को महसूस किया था। 1952 में उन्होंने लोकसभा में कहा था कि राज्य को चार हिस्सों में बांटने की आवश्यकता है, लेकिन उन्हें संदेह था कि उनके साथी इस विचार को स्वीकार करेंगे।
आंबेडकर का विभाजन का सुझाव
डॉक्टर भीम राव आंबेडकर ने उत्तर प्रदेश को तीन हिस्सों में बांटने का सुझाव दिया था। उन्होंने अपनी किताब 'थॉट्स एंड लिंग्विस्टिक स्टेट्स' में बताया कि इससे प्रशासनिक दक्षता बढ़ेगी और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा बेहतर होगी। 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग ने अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कीं, लेकिन उत्तर प्रदेश के विभाजन की सिफारिश नहीं की गई।
मायावती का विभाजन प्रस्ताव
2007 में मायावती ने चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद विधानसभा से उत्तर प्रदेश को चार हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव पारित किया। हालांकि, विपक्ष ने इसे राजनीतिक स्टंट करार दिया। प्रस्ताव को केंद्र सरकार ने वापस भेज दिया, और मायावती 2012 में सत्ता से बाहर हो गईं।
अखिलेश यादव की सरकार ने राज्य विभाजन के खिलाफ रुख अपनाया, जिससे यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया।