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उच्चतम न्यायालय ने अनधिकृत निर्माण हटाने के आदेश को रद्द किया

उच्चतम न्यायालय ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें गुरुग्राम में अनधिकृत निर्माण को हटाने का निर्देश दिया गया था। न्यायालय ने कहा कि यह आदेश उन संपत्ति मालिकों को सुनवाई का अवसर दिए बिना जारी किया गया था। पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि प्रभावित व्यक्ति समय पर आवेदन करते हैं, तो उन्हें सुनवाई में शामिल होने की अनुमति दी जाएगी। इस निर्णय ने न्यायिक प्रक्रिया में निष्पक्षता की आवश्यकता को उजागर किया है।
 

उच्चतम न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय

उच्चतम न्यायालय ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए उस आदेश को निरस्त कर दिया है, जिसमें गुरुग्राम की डीएलएफ सिटी में अवैध निर्माण को हटाने का निर्देश दिया गया था।


न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि यह आदेश उन संपत्ति मालिकों को सुनवाई का अवसर दिए बिना जारी किया गया था, जिन्हें मुकदमे में पक्षकार नहीं बनाया गया।


पीठ ने कहा कि मौजूदा मामले में उच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देश, चाहे वह दीवानी अदालत के अधिकार क्षेत्र से संबंधित हो या निर्माण हटाने के संदर्भ में, याचिकाकर्ताओं को रिट याचिका में पक्षकार बनाए बिना दिया गया प्रतीत होता है।


उन्होंने कहा, "यह आवश्यक है कि निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करने के लिए सुनवाई का अवसर प्रदान किया जाए, और अदालत को किसी भी पक्ष के अधिकारों पर निर्णय नहीं लेना चाहिए, जिनका पक्ष नहीं सुना गया।"


हालांकि, पीठ ने 28 अक्टूबर को पारित आदेश में कहा कि आवासीय संपत्तियों पर वाणिज्यिक उपयोग के लिए बनाए गए अनधिकृत या अवैध निर्माण को संरक्षण नहीं दिया जा सकता।


उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि कोई प्रभावित व्यक्ति निर्दिष्ट समय के भीतर उच्च न्यायालय में आवेदन करता है, तो उसे सुनवाई में शामिल होने की अनुमति दी जाएगी।


राज्य के अधिकारी प्रभावित व्यक्तियों को जनहित याचिका में शामिल करने के लिए इस आदेश का व्यापक प्रचार करने के लिए स्वतंत्र हैं।


पीठ ने यह भी कहा कि यदि प्रभावित व्यक्ति दो हफ्ते में सुनवाई में शामिल होने के लिए आवेदन नहीं करते हैं, तो उच्च न्यायालय इस मामले पर विचार करने और निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है।


उच्च न्यायालय ने अधिकारियों को हरियाणा शहरी क्षेत्र विकास एवं विनियमन अधिनियम 1975 की धारा-15 के तहत दो महीने के भीतर कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।


राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के समक्ष मामले का विस्तृत सार प्रस्तुत किया था, जिसमें गुरुग्राम क्षेत्र के विभिन्न निवासियों के निर्माण में कई उल्लंघनों का उल्लेख किया गया था।