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उच्चतम न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय: पासपोर्ट नवीनीकरण में स्वतंत्रता का अधिकार

उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि स्वतंत्रता केवल राज्य का उपहार नहीं, बल्कि उसका प्राथमिक दायित्व है। न्यायालय ने पासपोर्ट प्राधिकरण को नवीनीकरण के दौरान भविष्य की यात्रा या वीजा की योजना की मांग करने से रोका है। यह निर्णय महेश कुमार अग्रवाल की याचिका पर आधारित है, जो एक कानूनी मामले का सामना कर रहे हैं। जानें इस निर्णय के पीछे की पूरी कहानी और इसके संविधान पर प्रभाव के बारे में।
 

संविधान में स्वतंत्रता का महत्व

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि देश के संवैधानिक ढांचे में स्वतंत्रता केवल राज्य का उपहार नहीं है, बल्कि यह उसका प्राथमिक दायित्व है। न्यायालय ने यह भी कहा कि पासपोर्ट प्राधिकरण को नवीनीकरण के दौरान भविष्य की यात्रा या वीजा की योजना की मांग करने की आवश्यकता नहीं है।


पासपोर्ट प्राधिकरण की भूमिका

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति ए जी मसीह की पीठ ने बताया कि पासपोर्ट प्राधिकरण का कार्य यह सुनिश्चित करना है कि लंबित मामलों के बावजूद, आपराधिक अदालतों ने यात्रा की संभावनाओं को खुला रखने का विकल्प चुना है या नहीं।


संविधान के अनुच्छेद 21 का महत्व

न्यायालय ने कहा, "हमारे संविधान में स्वतंत्रता राज्य का उपहार नहीं, बल्कि उसका पहला दायित्व है। कानून के तहत, किसी नागरिक को आवागमन, यात्रा, आजीविका और अवसर प्राप्त करने की स्वतंत्रता अनुच्छेद 21 के तहत दी गई गारंटी का एक अनिवार्य हिस्सा है।"


महेश कुमार अग्रवाल की याचिका

यह आदेश महेश कुमार अग्रवाल की याचिका पर दिया गया, जो झारखंड के रांची में एनआईए अदालत में गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम के तहत मुकदमे का सामना कर रहे हैं। अग्रवाल ने जमानत की शर्त के तहत अपने पासपोर्ट के नवीनीकरण की मांग की थी, जबकि उनका पासपोर्ट 2023 में समाप्त हो गया था।


उच्चतम न्यायालय का निर्णय

न्यायालय ने कहा, "पासपोर्ट प्राधिकरण को नवीनीकरण के चरण में भविष्य की यात्रा या वीजा की योजना मांगने की आवश्यकता नहीं है।" अग्रवाल ने कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा नवीनीकरण की अनुमति न दिए जाने को चुनौती दी थी। उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए पासपोर्ट प्राधिकरण को अग्रवाल का पासपोर्ट नवीनीकरण का निर्देश दिया।