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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण की याचिका खारिज की

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के विद्युत वितरण निगमों के प्रस्तावित निजीकरण के खिलाफ दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि याचिका में मांगी गई राहत काल्पनिक है और याचिकाकर्ता ने प्रतिवादियों से संपर्क नहीं किया। जानें इस महत्वपूर्ण निर्णय के पीछे की वजह और अदालत के विचार।
 

याचिका का खारिज होना

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के विद्युत वितरण निगमों के प्रस्तावित निजीकरण के खिलाफ दायर जनहित याचिका को अस्वीकार कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि याचिका में मांगी गई राहत पूरी तरह से काल्पनिक है।


यह याचिका विजय प्रताप सिंह द्वारा दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश ऊर्जा निगम लिमिटेड के कुछ दस्तावेजों का उल्लेख करते हुए दक्षिणांचल और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण का विरोध किया था।


मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा, 'जिस राहत की मांग की गई है, वह केवल कल्पनाओं पर आधारित है। रिकॉर्ड से यह स्पष्ट नहीं होता कि याचिकाकर्ता ने किसी भी चरण में प्रतिवादियों (उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य) से संपर्क किया है।'


अदालत ने 11 जुलाई को दिए गए अपने आदेश में कहा, 'इस मामले को देखते हुए, हमें मौजूदा याचिका पर विचार करने का कोई कारण नहीं दिखता। इसलिए इसे खारिज किया जाता है।'