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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यूपी सरकार पर अपहरण मामले में लगाया जुर्माना

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार पर एक अपहरण मामले में अनावश्यक जांच जारी रखने के लिए 75,000 रुपये का जुर्माना लगाया है। अदालत ने कहा कि पीड़िता ने मजिस्ट्रेट के सामने स्पष्ट किया था कि वह अपनी मर्जी से दिल्ली गई थी, फिर भी जांच जारी रही। अदालत ने याचिकाकर्ता उम्मेद को 50,000 रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया और कहा कि यदि वह किसी अन्य मामले में वांछित नहीं है, तो उसे तुरंत रिहा किया जाए। इस निर्णय ने कानूनी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं।
 

इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार पर एक अपहरण मामले में अनावश्यक जांच जारी रखने के लिए 75,000 रुपये का जुर्माना लगाया है। अदालत ने यह कहा कि कथित पीड़िता ने मजिस्ट्रेट के सामने यह स्पष्ट किया था कि वह अपनी इच्छा से दिल्ली अपनी बेटी से मिलने गई थी, फिर भी जांच को जारी रखा गया।


याचिका और अदालत का आदेश

न्यायमूर्ति अब्दुल मोइन और न्यायमूर्ति बबीता रानी की खंडपीठ ने उम्मेद उर्फ उबैद खान और अन्य की याचिका पर यह आदेश पारित किया। याचिकाकर्ताओं ने बहराइच जिले के मटेरा थाना क्षेत्र में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 140 के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया था।


जुर्माने का वितरण

अदालत ने निर्देश दिया कि जुर्माने में से 50,000 रुपये याचिकाकर्ता उम्मेद को दिए जाएं, जो 18 सितंबर 2025 को गिरफ्तार हुए थे और तब से जेल में हैं। शेष 25,000 रुपये उच्च न्यायालय की कानूनी सेवा समिति को दिए जाएंगे।


महिला का बयान और पुलिस की कार्रवाई

अदालत के अनुसार, जांच के दौरान महिला को बरामद किया गया और 19 सितंबर 2025 को उसे न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया। उसने अपने बयान में कहा कि वह अपनी इच्छा से घर छोड़कर गई थी, क्योंकि उसका पति उसे मारता-पीटता था। उसने धर्म परिवर्तन या अपहरण से संबंधित किसी भी आरोप से इनकार किया।


अनावश्यक हिरासत का मामला

अदालत ने कहा कि महिला के स्पष्ट बयान के बावजूद पुलिस ने जांच जारी रखी और उम्मेद को जेल में रखा, जो अनुचित और अवैधानिक था। पीठ ने कहा कि जब महिला ने खुद दर्ज प्राथमिकी के आरोपों का समर्थन नहीं किया, तो जांच जारी रखने का कोई औचित्य नहीं था।


अंतिम आदेश

अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि उम्मेद को झूठी प्राथमिकी के आधार पर अनावश्यक रूप से हिरासत में रखा गया, और 13 सितंबर 2025 को दर्ज मामला रद्द कर दिया। साथ ही, अदालत ने आदेश दिया कि यदि वह किसी अन्य मामले में वांछित नहीं है, तो उसे तुरंत रिहा किया जाए।