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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बंदरों की समस्या पर राज्य सरकार से मांगा हलफनामा

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बंदरों के उत्पात की समस्या को गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार से हलफनामा पेश करने को कहा है। अदालत ने विभिन्न विभागों के बीच जिम्मेदारी के बंटवारे पर चिंता जताई है। सामाजिक कार्यकर्ता विनीत शर्मा की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान, अदालत ने बंदरों की बढ़ती जनसंख्या और मानव के साथ टकराव के मुद्दों पर चर्चा की। अगली सुनवाई 31 अक्टूबर को होगी, जिसमें आवश्यक कदम उठाने का आदेश दिया गया है।
 

बंदरों के उत्पात पर उच्च न्यायालय की सख्ती

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बंदरों के उत्पात की गंभीर समस्या को ध्यान में रखते हुए प्रदेश के प्रमुख सचिव (शहरी विकास) से एक हलफनामा पेश करने को कहा है। इसमें यह स्पष्ट करना होगा कि इस समस्या के समाधान के लिए क्या कदम उठाए गए हैं या क्या कदम प्रस्तावित हैं।


मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की पीठ ने कहा कि मानव और बंदर के बीच टकराव को रोकने के लिए विभिन्न विभाग एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं।


अदालत ने गाजियाबाद के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा 20 अगस्त, 2025 को भेजे गए पत्र के संदर्भ में राज्य सरकार की निष्क्रियता को उजागर किया, जिसमें बंदरों की समस्या को नियंत्रित करने के लिए कार्य योजना बनाने की आवश्यकता थी।


सामाजिक कार्यकर्ता विनीत शर्मा द्वारा दायर जनहित याचिका पर 19 सितंबर को सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि सभी नगर निगम शहरी विकास विभाग के अधीन आते हैं, इसलिए इस विभाग को भी पक्षकार बनाना उचित होगा। अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख 31 अक्टूबर निर्धारित की और कहा, “अगली तारीख से पहले आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।”


सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि लोग बंदरों के उत्पात से परेशान हैं, जबकि बंदरों को भोजन की कमी के कारण भुखमरी का सामना करना पड़ रहा है। यह समस्या प्रदेश के कई जिलों में फैली हुई है।


अदालत को कौशांबी, प्रयागराज, सीतापुर, बरेली और आगरा में बंदरों के हमलों की घटनाओं की जानकारी दी गई, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि यह समस्या केवल कुछ जिलों तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे राज्य में व्याप्त है।


उन्होंने बताया कि बंदरों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची से बाहर किए जाने के बाद अब ये नगर निगम अधिनियम के दायरे में आते हैं, और इनका उपद्रव कम करने तथा लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी नगर निगमों की है।


याचिका में बंदरों की बढ़ती जनसंख्या, मानव और बंदरों के बीच बढ़ते टकराव, भोजन की कमी और भुखमरी जैसे मुद्दों को उठाया गया है। इसमें तत्काल कार्य योजना बनाने, बंदरों की देखभाल और परिवहन की व्यवस्था करने, उन्हें जंगल में भेजने और शिकायत हेल्पलाइन पोर्टल स्थापित करने की मांग की गई है।