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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्राथमिक विद्यालयों के विलय पर सुनवाई टाली

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्राथमिक विद्यालयों के विलय के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई को बृहस्पतिवार तक के लिए स्थगित कर दिया है। याचिकाकर्ताओं ने सरकार के इस कदम को बच्चों के निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन बताया है। उनका तर्क है कि विलय के कारण छोटे बच्चों के लिए विद्यालय दूर हो जाएंगे, जिससे उनकी शिक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। जानें इस मामले में और क्या कहा गया है।
 

सुनवाई की अगली तारीख

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ शाखा ने बुधवार को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्राथमिक विद्यालयों के विलय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई को बृहस्पतिवार तक के लिए स्थगित कर दिया।


याचिका का विवरण

न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की पीठ ने कृष्णा कुमारी और 50 अन्य द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश जारी किया। याचिकाकर्ताओं ने 16 जून को बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा जारी किए गए निर्णय को चुनौती दी है, जिसमें छात्र नामांकन की संख्या के आधार पर प्राथमिक विद्यालयों को उच्च प्राथमिक या कम्पोजिट विद्यालयों में विलय करने का प्रावधान है।


शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन

याचिका में यह तर्क दिया गया है कि सरकार का यह निर्णय बच्चों के निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम का उल्लंघन करता है। इसमें कहा गया है कि विलय के कारण प्राथमिक विद्यालय छोटे बच्चों के लिए दूर हो जाएंगे, जिससे उनकी शिक्षा प्रभावित होने की संभावना बढ़ जाती है।


सरकार की जिम्मेदारी

याचिकाकर्ताओं ने इस बात पर जोर दिया है कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत बच्चों के निकट प्राथमिक शिक्षा के लिए विद्यालय उपलब्ध कराना सरकार की कानूनी जिम्मेदारी है।