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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दुष्कर्म पीड़िता और बच्चे की डीएनए जांच पर निर्णय दिया

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण मामले में दुष्कर्म पीड़िता और उसके बच्चे की डीएनए जांच के आदेश को खारिज कर दिया है। न्यायालय ने कहा कि इस तरह की जांच के गंभीर सामाजिक परिणाम हो सकते हैं और केवल विशेष परिस्थितियों में ही इसे अनुमति दी जा सकती है। याचिकाकर्ता ने अपनी निर्दोषता साबित करने के लिए डीएनए जांच की मांग की थी, जिसे अदालत ने अस्वीकार कर दिया। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और अदालत के निर्णय के पीछे के तर्क।
 

डीएनए जांच के आदेश पर अदालत का निर्णय

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक मामले में स्पष्ट किया है कि दुष्कर्म पीड़िता और उसके बच्चे की डीएनए जांच का आदेश सामान्य परिस्थितियों में नहीं दिया जा सकता, क्योंकि इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।


अदालत ने रामचंद्र राम नामक व्यक्ति की याचिका को खारिज कर दिया, जिसने एक महिला और उसके बच्चे की डीएनए जांच की मांग की थी।


न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा ने कहा, "भादंसं की धारा 376 (दुष्कर्म) के तहत उस बच्चे के पितृत्व का पता लगाने की आवश्यकता नहीं होती। दुष्कर्म पीड़िता और उसके बच्चे के डीएनए की जांच के गंभीर सामाजिक परिणाम होते हैं। केवल बाध्यकारी और अपरिहार्य परिस्थितियों में ही डीएनए जांच का आदेश दिया जा सकता है।"


इस मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ भादंसं की धाराओं 376 (दुष्कर्म), 452 (घर में घुसने), 342 (गलत ढंग से कैद करने), 506 (आपराधिक धमकी) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 5/6 के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया गया था।


जांच के बाद याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया और मामले की सुनवाई आगे बढ़ी। बाद में, पांच गवाहों की गवाही के बाद, याचिकाकर्ता ने दुष्कर्म पीड़िता और उसके बच्चे के डीएनए की जांच के लिए आवेदन दिया, जिसे निचली अदालत ने खारिज कर दिया।


इसके बाद, उसने उच्च न्यायालय का रुख किया और दलील दी कि निर्दोष साबित होने के लिए डीएनए जांच आवश्यक है। अदालत ने 22 अगस्त के निर्णय में कहा कि दुष्कर्म पीड़िता और उसके बच्चे की डीएनए जांच कराने के लिए कोई बाध्यकारी परिस्थितियां नहीं हैं जो जांच की आवश्यकता दर्शाती हों। अदालत ने निचली अदालत के निर्णय को सही ठहराया।