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इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला: भीड़ हिंसा की घटनाएं अलग-अलग हैं

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भीड़ द्वारा हत्या और हिंसा की घटनाओं को अलग-अलग मामलों के रूप में मान्यता दी है। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति अवनीश सक्सेना की पीठ ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्णय दिया। अदालत ने कहा कि पीड़ित पक्ष को पहले सरकार से संपर्क करने का विकल्प है। जानें इस महत्वपूर्ण निर्णय के पीछे की वजहें और इसके प्रभाव।
 

भीड़ हिंसा पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि भीड़ द्वारा हत्या या हिंसा की हर घटना एक अलग मामला है, और इसे जनहित याचिका (पीआईएल) के माध्यम से नहीं देखा जा सकता।


यह निर्णय न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति अवनीश सक्सेना की पीठ ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया, जिसमें भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या की घटनाओं को रोकने के लिए उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देशों का पालन करने की मांग की गई थी।


पीठ ने इस याचिका को समाप्त करते हुए कहा कि तहसीन एस. पूनावाला बनाम केंद्र सरकार (2018) के मामले में उच्चतम न्यायालय का निर्णय राज्य और केंद्र सरकार के लिए बाध्यकारी है।


अदालत ने यह भी कहा कि पीड़ित पक्ष के लिए इस अदालत का रुख करने से पहले सरकार से संपर्क करने का विकल्प खुला है। याचिकाकर्ता ने तहसीन पूनावाला के मामले में उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देशों को लागू करने के लिए निर्देश देने की मांग की थी।


वहीं, सरकारी वकील ने इस जनहित याचिका की वैधता पर सवाल उठाया। अदालत ने 15 जुलाई को अपने निर्णय में कहा कि पीड़ित पक्ष को उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देशों को लागू कराने के लिए उचित सरकारी अधिकारी से संपर्क करने की स्वतंत्रता है।