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आरबीआई गवर्नर का बयान: गिरते रुपये का अर्थव्यवस्था पर नहीं पड़ेगा असर

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने हाल ही में रुपये की कमजोरी को लेकर बयान दिया है, जिसमें उन्होंने कहा कि इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोई गंभीर प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने पिछले 10-20 वर्षों के रुझानों के आधार पर रुपये की गिरावट को असामान्य नहीं माना। इस लेख में जानें कि इस वर्ष रुपये पर दबाव के कारण क्या हैं और आरबीआई की नई रणनीति क्या है। साथ ही, भारत की बाहरी आर्थिक स्थिति और व्यापार घाटे के बारे में भी जानकारी प्राप्त करें।
 

आरबीआई गवर्नर का दृष्टिकोण

भारतीय रिजर्व बैंक

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने हाल ही में कहा कि रुपये की हालिया कमजोरी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोई गंभीर प्रभाव नहीं पड़ेगा। उनका मानना है कि रुपये में गिरावट का वर्तमान स्तर पिछले 10-20 वर्षों के रुझानों से बहुत भिन्न नहीं है और इसे असामान्य नहीं माना जाना चाहिए।

एक साक्षात्कार में, उन्होंने बताया कि पिछले एक दशक में रुपये की औसत वार्षिक कमजोरी लगभग 3 प्रतिशत रही है, जबकि 20 वर्षों में यह गिरावट लगभग 3.4 प्रतिशत प्रति वर्ष रही है। इस प्रकार, मौजूदा गिरावट को असाधारण नहीं समझा जाना चाहिए। उनका कहना है कि मुद्रा में उतार-चढ़ाव एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।


इस वर्ष रुपये पर दबाव के कारण

इस साल क्यों दबाव में आया रुपया

इस वर्ष रुपये पर दबाव कई कारणों से बढ़ा है। अमेरिकी डॉलर की मजबूती, विदेशी निवेशकों का भारत से धन निकालना, और भारत-अमेरिका के बीच व्यापार शुल्क समझौते को लेकर अनिश्चितता ने रुपये को कमजोर किया है। दिसंबर के मध्य में, रुपये ने डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निम्न स्तर को छुआ। 2025 में, रुपये ने एशियाई मुद्राओं में सबसे कमजोर प्रदर्शन किया है।


आरबीआई की नई रणनीति

RBI की रणनीति

आरबीआई की रुपये की चाल को लेकर रणनीति अब पहले से भिन्न है। गवर्नर के अनुसार, केंद्रीय बैंक अब बाजार की ताकतों को अधिक महत्व दे रहा है। आरबीआई केवल तब हस्तक्षेप करता है जब मुद्रा बाजार में अत्यधिक उतार-चढ़ाव या सट्टेबाजी का माहौल बनता है। उनका कहना है कि आरबीआई का उद्देश्य रुपये की कोई निश्चित कीमत निर्धारित करना नहीं है, बल्कि अस्थिरता को नियंत्रित करना है।


भारत की बाहरी आर्थिक स्थिति

मजबूत है भारत की बाहरी स्थिति

कमजोर रुपये और वैश्विक तनाव के बावजूद, आरबीआई को भारत की बाहरी आर्थिक स्थिति पर पूरा विश्वास है। हाल के आंकड़ों के अनुसार, देश के पास लगभग 11 महीनों के आयात के बराबर विदेशी मुद्रा भंडार है। इसके अतिरिक्त, भारत के कुल बाहरी कर्ज का लगभग 92 प्रतिशत हिस्सा विदेशी मुद्रा भंडार से कवर होता है।


व्यापार घाटा और विदेशी मुद्रा भंडार

व्यापार घाटा और विदेशी मुद्रा भंडार से राहत

नवंबर में भारत का व्यापार घाटा पांच महीने के निचले स्तर पर आ गया, जिसका मुख्य कारण सोने, तेल और कोयले के आयात में कमी रही। वहीं, अमेरिका को निर्यात में भी अच्छी वृद्धि देखी गई। आरबीआई गवर्नर ने बताया कि भारत का कुल बाहरी कर्ज लगभग 750 अरब डॉलर है, जबकि विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 690 अरब डॉलर के आसपास है, जिससे देश अपनी अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों को आसानी से निभा सकता है।