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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने स्वास्थ्य और शिक्षा की बढ़ती लागत पर चिंता जताई

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा की बढ़ती लागत पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि ये सेवाएं अब आम जनता की पहुंच से बाहर हो गई हैं। भागवत ने व्यक्तिगत देखभाल की आवश्यकता और विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के लाभ पर भी जोर दिया। उनका मानना है कि स्वास्थ्य सेवा को चिंता का विषय नहीं होना चाहिए। इस लेख में भागवत के विचारों और भारतीय चिकित्सा प्रणालियों की विशेषताओं पर चर्चा की गई है।
 

स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा की दुर्गमता पर चिंता

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने भारत में स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा की बढ़ती लागत के बारे में चिंता व्यक्त की। उन्होंने गुरुजी सेवा न्यास द्वारा स्थापित माधव सृष्टि आरोग्य केंद्र का उद्घाटन करते हुए कहा कि आज शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों ही आम जनता की पहुंच से बाहर हो गए हैं। पहले ये सेवाएं सेवा भाव से प्रदान की जाती थीं, लेकिन अब यह एक व्यवसाय बन गई हैं।


भागवत ने कैंसर उपचार की सुविधाओं में मौजूद असमानताओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि उन्नत चिकित्सा केवल आठ से दस भारतीय शहरों में उपलब्ध है। इसके कारण मरीजों को इलाज के लिए भारी खर्च और लंबी यात्रा करनी पड़ती है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य देखभाल को चिंता का विषय नहीं होना चाहिए।


व्यक्तिगत देखभाल की आवश्यकता

भागवत ने अपने बचपन की एक घटना को याद करते हुए बताया कि जब उन्हें मलेरिया हुआ था, तब उनके शिक्षक उनके इलाज के लिए जंगली जड़ी-बूटियाँ लेकर आए थे। उन्होंने कहा कि इस तरह की व्यक्तिगत देखभाल की समाज को फिर से आवश्यकता है। इसके साथ ही, भागवत ने भारतीय संदर्भ में पश्चिमी चिकित्सा अनुसंधान को बिना सोचे-समझे लागू करने के प्रति चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि विभिन्न लोग विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों से लाभान्वित होते हैं, चाहे वह प्राकृतिक चिकित्सा, होम्योपैथी या एलोपैथी हो।


स्वास्थ्य सेवा की तुलना

भागवत ने कहा कि कोई भी एक चिकित्सा पद्धति सर्वोच्च नहीं हो सकती। भारतीय चिकित्सा प्रणालियाँ व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुसार उपचार प्रदान करती हैं। स्वास्थ्य सेवा की तुलना करते हुए, उन्होंने कहा कि कई क्षेत्रों में छात्रों को अभी भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए दूर तक यात्रा करनी पड़ती है। इसके अलावा, भागवत ने कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) जैसे तकनीकी शब्दों को खारिज करते हुए कहा कि सेवा के संदर्भ में हमारे पास 'धर्म' नामक एक शब्द है।