आरएसएस के 100 वर्ष: मोहन भागवत का संदेश और भारत की भूमिका
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने 100 वर्ष पूरे होने का जश्न मनाया, जिसमें मोहन भागवत ने भारत की भूमिका और वैश्विक दृष्टिकोण पर जोर दिया। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि हर राष्ट्र का एक मिशन होता है। भागवत ने क्रांतिकारियों की प्रेरणा और आरएसएस की स्थापना के पीछे के विचार को भी साझा किया। जानें इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम के बारे में और अधिक।
Aug 26, 2025, 19:13 IST
आरएसएस की शताब्दी का जश्न
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया। इस मौके पर, संगठन के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि आरएसएस अपनी यात्रा के इस महत्वपूर्ण पड़ाव पर पहुंच गया है। उन्होंने बताया कि संघ का मूल संदेश हमारी प्रार्थना की अंतिम पंक्ति में छिपा है, जिसे हम प्रतिदिन दोहराते हैं: 'भारत माता की जय'। यह हमारा देश है, और हमें इसकी सराहना करनी चाहिए तथा इसे वैश्विक स्तर पर सर्वोच्च स्थान दिलाने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। भागवत ने यह भी कहा कि आज की दुनिया एकजुट हो रही है, इसलिए हमें वैश्विक दृष्टिकोण अपनाना होगा।
स्वामी विवेकानंद का संदर्भ
भागवत ने स्वामी विवेकानंद का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने एक बार कहा था, "हर राष्ट्र का एक मिशन होता है, जिसे उसे पूरा करना होता है"। भारत का भी एक महत्वपूर्ण योगदान है। यदि किसी देश को नेतृत्व करना है, तो उसे अपने लिए नहीं, बल्कि विश्व व्यवस्था में एक नई दिशा लाने के लिए कार्य करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि आरएसएस की स्थापना का उद्देश्य भारत के लिए है, और इसका महत्व भारत को 'विश्वगुरु' बनाने में निहित है। अब भारत के योगदान का समय आ गया है।
क्रांतिकारियों की प्रेरणा
मोहन भागवत ने कहा कि क्रांतिकारियों की एक नई लहर आई है, जो आज भी हमें प्रेरित करती है। उन्होंने सावरकर जी का उल्लेख करते हुए कहा कि वह उस लहर के एक चमकदार उदाहरण थे। हालांकि, वह लहर अब मौजूद नहीं है, लेकिन यह देश के लिए जीने-मरने की प्रेरणा थी। 1857 के विद्रोह के बाद, कुछ लोगों ने आज़ादी के लिए राजनीति को एक हथियार बनाया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन किया। इससे कई राजनीतिक दल बने, जिन्होंने आज़ादी के अपने लक्ष्य को प्राप्त किया। अगर उस आंदोलन ने आज़ादी के बाद भी उसी तरह से प्रकाश डाला होता, तो आज की स्थिति अलग होती।
आरएसएस की स्थापना का विचार
मोहन भागवत ने कहा कि हम इस वर्ष 100 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहे हैं, लेकिन इस संगठन का विचार डॉक्टर साहब के मन में 1925 से पहले ही विकसित हो चुका था। यह विचार आकार लेकर 1925 की 'विजयदशमी' के बाद डॉक्टर साहब द्वारा घोषित किया गया। उन्होंने बताया कि यह संगठन पूरे हिंदू समुदाय के लिए है। जो भी व्यक्ति हिंदू के रूप में पहचाना जाना चाहता है, उसे देश का जिम्मेदार नागरिक बनना होगा। यह एक जिम्मेदार समुदाय है, क्योंकि हमें यह पहचान बहुत पहले मिल चुकी थी।