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आरएसएस की 100 साल की यात्रा: एक ऐतिहासिक अवलोकन

आरएसएस की 100 साल की यात्रा एक ऐतिहासिक अवलोकन है, जिसमें संघ की स्थापना, उद्देश्यों, कार्यपद्धति और सामाजिक योगदान का विश्लेषण किया गया है। जानें कैसे संघ ने भारतीय समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भविष्य में इसके उद्देश्यों को कैसे आगे बढ़ाने की योजना है। यह लेख संघ के सरसंघचालकों की भूमिका और उनके योगदान पर भी प्रकाश डालता है।
 

आरएसएस की स्थापना का ऐतिहासिक संदर्भ


लोकेन्द्र सिंह


“हम सब मिलकर संघ प्रारंभ कर रहे हैं”। यह वाक्य डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के अवसर पर 17 लोगों की बैठक में कहा था। यह उसी प्रकार का संकल्प था, जैसा छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने 9 मित्रों के साथ ‘हिन्दवी स्वराज्य’ की स्थापना के लिए लिया था। कहा जाता है कि जब संकल्प शुभ होते हैं, तो ईश्वर उनकी पूर्ति में सहायता करते हैं। संघ के स्वयंसेवक इसे ईश्वरीय कार्य मानते हैं। संघ की स्थापना के समय विश्वनाथ केलकर, भाऊजी कावरे, डा. ल.वा. परांजपे, रघुनाथराव बांडे, भय्याजी दाणी, बापूराव भेदी, अण्णा वैद्य, कृष्णराव मोहरील, नरहर पालेकर, दादाराव परमार्थ, अण्णाजी गायकवाड, देवघरे, बाबूराव तेलंग, तात्या तेलंग, बालासाहब आठल्ये, बालाजी हुद्दार और अण्णा साहोनी ने विचार-विमर्श किया। डॉ. साहब ने सबके सामने प्रश्न रखा कि “संघ में प्रत्यक्ष क्या कार्यक्रम किए जाएं, जिससे हम कह सकें कि संघ शुरू हो गया?” यह प्रश्न उचित था। सभी ने अपने सुझाव दिए, और डॉ. साहब ने कहा कि संघ का अर्थ है कि “हमें शारीरिक, बौद्धिक और हर तरह से खुद को तैयार करना चाहिए ताकि हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें।”


संघ का उद्देश्य और प्रारंभिक कार्य

उस समय देश में अंग्रेजों का शासन था और हम स्वराज्य के लिए संघर्ष कर रहे थे। डॉ. हेडगेवार जी ने विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया और यह महसूस किया कि स्वतंत्रता के लिए भारतीय समाज में राष्ट्रभक्ति और आत्मगौरव की भावना जगाना आवश्यक है। इसके लिए हिन्दू समाज का संगठन जरूरी था। स्वतंत्रता से पहले स्वयंसेवकों को प्रतिज्ञा कराई जाती थी कि “मैं हिन्दूराष्ट्र को स्वतंत्र कराने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का घटक बना हूँ।”


नागपुर में मोहिते के बाड़े में 6 लोगों के साथ पहली शाखा की शुरुआत हुई, जिसमें 5 बच्चे थे। उस समय लोगों ने डॉ. हेडगेवार का मजाक उड़ाया कि वे बच्चों के साथ क्रांति करने आए हैं। लेकिन किसने सोचा था कि संघ कार्य देश-दुनिया में फैल जाएगा और यह विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठन बन जाएगा। वर्तमान में भारत के 924 जिलों में से 98.3 प्रतिशत जिलों में संघ की शाखाएँ चल रही हैं।


संघ की कार्यपद्धति और विकास

प्रारंभिक दिनों में संघ के कार्यक्रम आज के समान नहीं थे। सभी स्वयंसेवक नागपुर की ‘महाराष्ट्र व्यायामशाला’ में एकत्र होते थे। कुछ समय बाद सैनिक प्रशिक्षण भी शुरू किया गया। 1927 के बाद ‘बौद्धिक वर्ग’ का आयोजन किया गया, जिसमें देश की वर्तमान स्थिति और संगठन को मजबूत करने के उपायों पर चर्चा होती थी।


संघ का नामकरण 17 अप्रैल 1926 को हुआ, जब कई कार्यकर्ताओं ने मिलकर ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ नाम को स्वीकार किया। इस प्रकार संघ की कार्यपद्धति का विकास धीरे-धीरे हुआ। डॉ. हेडगेवार ने कहा था कि “मैं कोई नया कार्य प्रारंभ नहीं कर रहा हूँ। यह पहले से हमारी संस्कृति में है।” संघ की 100 वर्ष की यात्रा में इसके विकास के पांच प्रमुख चरण हैं।


संघ का सामाजिक योगदान

स्वतंत्रता के बाद संघ का विकास तेजी से हुआ। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के निधन के बाद माधव सदाशिवराव गोलवलकर ने संघ का नेतृत्व किया। उन्होंने प्रचारकों की नई पद्धति को जन्म दिया और संघ कार्य को देशभर में फैलाया।


संघ ने समाज परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1949 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना की गई, इसके बाद कई अन्य संगठनों की भी स्थापना हुई। संघ ने सेवा कार्यों को गति देने का निर्णय लिया और आज लगभग 1 लाख 29 हजार सेवा कार्य चलाए जा रहे हैं।


संघ का भविष्य और समाज के साथ एकता

2 अक्टूबर, 2025 को संघ 100 वर्ष की यात्रा पूरी करेगा। यह संघ और समाज के लिए एक महत्वपूर्ण चरण होगा। संघ का उद्देश्य समाज के साथ एकरस होना है, ताकि समाज और संघ में कोई अंतर न रहे। डॉ. हेडगेवार ने कहा था कि हमें अपने उद्देश्य को जल्द से जल्द प्राप्त करना है।


संघ के स्वयंसेवक समाज में जागरूकता निर्माण करने के लिए विभिन्न प्रकार के उपक्रम करते रहते हैं। संघ का यह नया चरण समाज जागरण का एक बड़ा अभियान होगा।


संघ के सरसंघचालक

डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार (1925-1940):


डॉ. हेडगेवार ने 36 वर्ष की आयु में संघ की स्थापना की और पहले सरसंघचालक बने।


श्री माधव सदाशिवराव गोलवलकर (1940-1973):


श्रीगुरुजी ने 33 वर्षों तक संघ का मार्गदर्शन किया और संघ को कई महत्वपूर्ण दिशा दी।


श्री बालासाहब देवरस (1973-1993):


बालासाहब ने संघ में सेवा कार्यों को प्रभावी बनाया और आपातकाल के दौरान संघ का नेतृत्व किया।


प्रो. राजेन्द्र सिंह (1993-2000):


रज्जू भैया ने संघ के कार्यों का विस्तार किया और विदेशों में भी संघ कार्य का निरीक्षण किया।


श्री कुप. सी. सुदर्शन (2000-2009):


सुदर्शन जी ने संघ के कार्यों को आगे बढ़ाया और समाज के विभिन्न वर्गों के साथ संवाद किया।


डॉ. मोहन भागवत (2009 से अब तक):


डॉ. भागवत ने संघ के छठे सरसंघचालक के रूप में कार्यभार संभाला और संघ के उद्देश्यों को आगे बढ़ाया।