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आरएसएस का शताब्दी वर्ष: डॉ. कमलताई गवई का निमंत्रण और राजनीतिक संदेश

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) अपने शताब्दी वर्ष की तैयारी में डॉ. कमलताई गवई को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित कर रहा है। यह निमंत्रण न केवल पारिवारिक संबंधों का प्रतीक है, बल्कि एक गहरे राजनीतिक संदेश का भी प्रतिनिधित्व करता है। संघ की यह रणनीति समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुँचने और संवाद स्थापित करने की है, विशेषकर उन वर्गों के साथ जो ऐतिहासिक रूप से संघ से दूर रहे हैं। क्या यह कदम दलित समाज में संघ की धारणा को बदलने में सहायक होगा? जानें इस महत्वपूर्ण विषय पर और अधिक।
 

आरएसएस की शताब्दी वर्ष की तैयारी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) अपने शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में इस बार समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुँचने का प्रयास कर रहा है। इस वर्ष विजयादशमी के अवसर पर अमरावती (महाराष्ट्र) में आयोजित कार्यक्रम में भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की माता, डॉ. कमलताई गवई को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है। यह निमंत्रण केवल पारिवारिक या सांस्कृतिक संदर्भ में नहीं, बल्कि एक गहरे राजनीतिक और वैचारिक संदेश के रूप में देखा जा रहा है।


डॉ. कमलताई गवई का महत्व

डॉ. कमलताई गवई, स्वर्गीय आर.एस. गवई की पत्नी हैं, जो विदर्भ में अंबेडकरी आंदोलन के प्रमुख नेता रहे हैं और कई संवैधानिक पदों पर कार्य कर चुके हैं। उनका परिवार लंबे समय से बौद्ध आंदोलन और दलित चेतना से जुड़ा रहा है। इस कारण संघ द्वारा उन्हें मुख्य अतिथि बनाना और उनका इसे स्वीकार करना चर्चा का विषय बन गया है।


आरएसएस की स्थापना और शताब्दी वर्ष की योजनाएँ

आरएसएस की स्थापना 1925 में विजयादशमी के दिन डॉ. के.बी. हेडगेवार द्वारा की गई थी। 2025 में इसका शताब्दी वर्ष मनाया जाएगा, और इस अवसर पर संघ ने देशभर में लाखों ‘हिंदू सम्मेलनों’ और हजारों संगोष्ठियों का आयोजन करने का निर्णय लिया है। नागपुर में संघ प्रमुख मोहन भागवत का पारंपरिक विजयादशमी भाषण 2 अक्टूबर को होगा, जबकि अमरावती का कार्यक्रम स्थानीय स्तर पर इसकी श्रृंखला का हिस्सा है।


संघ की रणनीति और संवाद का प्रयास

संघ की यह रणनीति केवल हिंदू समाज के भीतर संगठनात्मक शक्ति बढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि वह उन वर्गों तक भी पहुँचना चाहता है, जो ऐतिहासिक रूप से संघ से दूर रहे हैं। दलित समुदाय और अंबेडकरी आंदोलन संघ के लिए लंबे समय से चुनौती बने हुए हैं। ऐसे में डॉ. कमलताई गवई जैसी शख्सियत को मंच पर लाना संघ की इस कोशिश का हिस्सा माना जा सकता है कि वह अपने प्रति ‘विरोधी’ माने जाने वाले वर्गों के भीतर भी संवाद का रास्ता खोले।


राजनीतिक हलकों में उठते सवाल

इस निमंत्रण को स्वीकार करने पर राजनीतिक हलकों में कई सवाल उठे हैं। गवई परिवार के सदस्य और डॉ. कमलताई गवई के पुत्र राजेंद्र गवई ने स्पष्ट किया है कि व्यक्तिगत और राजनीतिक रिश्ते अलग-अलग होते हैं। उन्होंने यह भी जोड़ा कि उनकी विचारधारा मजबूत है और वह इसे किसी भी परिस्थिति में नहीं छोड़ते। यह बयान संघ के मंच पर उपस्थिति को किसी राजनीतिक सहमति के रूप में नहीं, बल्कि विचारधारात्मक संवाद के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा है।


संघ का उद्देश्य और दलित राजनीति

यहाँ सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या यह घटना केवल व्यक्तिगत स्तर पर आमंत्रण स्वीकार करने तक सीमित है या इसके पीछे कोई बड़ा राजनीतिक निहितार्थ भी है? यदि संघ गवई परिवार जैसे प्रतिष्ठित नामों को अपने मंच पर लाने में सफल होता है, तो यह दलित समाज में उसके प्रति धारणा बदलने का एक कदम हो सकता है। हालाँकि, दलित राजनीति की अपनी जटिलताएँ हैं। आर.एस. गवई स्वयं जीवन भर अंबेडकरी आंदोलन के स्तंभ रहे और संघ की वैचारिकी से असहमत भी।


संघ की व्यापक योजना

अमरावती का यह कार्यक्रम संघ की उस व्यापक योजना का हिस्सा है, जिसके माध्यम से वह समाज के सभी वर्गों तक पहुँचकर अपने शताब्दी वर्ष को ऐतिहासिक बनाना चाहता है। डॉ. कमलताई गवई का मुख्य अतिथि बनना इस बात का संकेत है कि संघ केवल पारंपरिक समर्थकों पर ही नहीं, बल्कि अपने आलोचकों या विरोधी माने जाने वाले वर्गों तक भी संवाद स्थापित करना चाहता है।


भविष्य की संभावनाएँ

फिर भी, सवाल यह बना रहेगा कि क्या यह संवाद वैचारिक मतभेदों को पाटने में सहायक होगा, या केवल प्रतीकात्मक राजनीति तक सीमित रह जाएगा। आने वाले समय में दलित राजनीति और संघ के रिश्तों में किस तरह का उतार-चढ़ाव आता है, यह देखना दिलचस्प होगा।