आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर अमित शाह का बयान: लोकतंत्र की रक्षा की आवश्यकता
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर अपने विचार साझा करते हुए लोकतंत्र की रक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि आपातकाल के दौरान तानाशाही के खिलाफ लड़ाई कैसे लड़ी गई और इंदिरा गांधी की घोषणा के समय की स्थिति को भी उजागर किया। शाह ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि उस समय के हालात कितने कठिन थे। यह चर्चा आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए हमें अतीत की घटनाओं को याद रखना चाहिए।
Jun 24, 2025, 19:28 IST
आपातकाल की स्मृति का महत्व
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 'आपातकाल के 50 साल' कार्यक्रम में कहा कि आज आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ है। उन्होंने सवाल उठाया कि 50 साल पहले की घटना पर चर्चा क्यों की जा रही है। उन्होंने बताया कि जब किसी राष्ट्रीय घटना के 50 साल पूरे होते हैं, तो उसकी स्मृति धुंधली हो जाती है। यदि लोकतंत्र को प्रभावित करने वाली आपातकाल जैसी घटना की याद मिट जाती है, तो यह देश के लिए हानिकारक हो सकता है।
तानाशाही के खिलाफ लड़ाई
शाह ने कहा कि आपातकाल के दौरान लड़ाई इसलिए जीती गई क्योंकि भारतीय समाज तानाशाही को सहन नहीं कर सकता। उन्होंने बताया कि उस समय आपातकाल को केवल तानाशाहों और उनके समर्थकों ने ही पसंद किया। जब पहली बार लोकसभा चुनाव हुए, तो आजादी के बाद पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।
आपातकाल की परिभाषा
अमित शाह ने कहा, "आपातकाल को एक वाक्य में परिभाषित करना कठिन है। यह एक लोकतांत्रिक देश के बहुदलीय लोकतंत्र को तानाशाही में बदलने की साजिश है।" उन्होंने बताया कि उस समय जेल में डालने का विचार कितना क्रूर था। शाह ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि जब आपातकाल की घोषणा हुई, तब वह केवल 11 साल के थे। गुजरात में इसका प्रभाव कम था, लेकिन उनके गांव से 184 लोग जेल गए थे।
इंदिरा गांधी की घोषणा
अमित शाह ने कहा कि सुबह 8 बजे इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो पर आपातकाल की घोषणा की। उन्होंने सवाल किया कि क्या संसद की मंजूरी ली गई थी या विपक्ष को विश्वास में लिया गया था। उन्होंने बताया कि इंदिरा गांधी को संसद में वोट देने का अधिकार नहीं था, और उन्होंने नैतिकता को छोड़कर प्रधानमंत्री बने रहने का निर्णय लिया।