आचार्य शुक्राचार्य की भयानक कथा: दामाद को श्राप देने की कहानी
आचार्य शुक्राचार्य की कथा
आज हम आचार्य शुक्राचार्य की एक अनोखी कथा प्रस्तुत कर रहे हैं, जो शायद ही किसी को ज्ञात हो। यह कहानी प्रचलित है, लेकिन इसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
कथा के अनुसार, आचार्य शुक्राचार्य की बेटी देवयानी का विवाह नहुषा के पुत्र ययाति से हुआ था, और ययाति बाद में राजा बने। शुक्राचार्य ने इस विवाह को स्वीकृति दी थी, लेकिन उन्होंने ययाति को स्पष्ट रूप से चेतावनी दी थी कि वह अपनी बेटी के अलावा किसी और से संबंध नहीं बनाएंगे। इसके बावजूद, ययाति का दिल किसी और पर आ गया।
देवयानी और ययाति का वैवाहिक जीवन सुखद था, लेकिन ययाति देवयानी की दासी शर्मिष्ठा के प्रति आकर्षित हो गए। शर्मिष्ठा, जो दानव वंश से थी, बेहद सुंदर थी। एक दिन जब वह कुएं में गिर गई, ययाति ने उसे बचाया और अपने प्रेम का इज़हार किया।
दोनों ने एक-दूसरे से प्रेम करना शुरू कर दिया, लेकिन आचार्य शुक्राचार्य के डर के कारण वे इसे स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। अंततः, उन्होंने छिपकर विवाह कर लिया, लेकिन देवयानी ने उन्हें एक दिन प्रेम करते हुए देख लिया और अपने पिता को बताया। इस पर आचार्य शुक्राचार्य ने ययाति को बूढ़ा होने का श्राप दे दिया।
ययाति ने कहा कि इसका असर देवयानी पर भी पड़ेगा। शुक्राचार्य ने कहा कि यदि कोई उसे अपनी जवानी दे दे, तो वह फिर से सुख भोग सकता है। ययाति ने अपने पांचों पुत्रों से पूछा, लेकिन चार ने मना कर दिया। छोटे बेटे पुरू ने अपने पिता की मदद की और अपनी जवानी दे दी।
इस घटना के बाद, ययाति ने अपने चारों बेटों को राजपाट से निकाल दिया और श्राप दिया कि वे अपने पिता के साम्राज्य में राज नहीं कर सकेंगे। पुरू को राजा बनाया गया, और उसके नाम से पुरू वंश की स्थापना हुई, जबकि अन्य चार भाइयों का वंश यदुवंश कहलाया।
कहानियों और पुरानी कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में ऋषि कठोर तपस्या करते थे और उनके श्राप का प्रभाव भी होता था। इसीलिए कई बार राजाओं को भी ऋषियों के श्राप का सामना करना पड़ा।