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अहंकार और आत्मा: जीवन का वास्तविक लक्ष्य

इस लेख में अहंकार और आत्मा के बीच के संबंध को समझाया गया है। यह बताया गया है कि कैसे अहंकार का नाश करना और अपने असली स्वरूप को पहचानना जीवन का मुख्य उद्देश्य है। अहंकार के प्रभाव, ममता, और कामनाओं के त्याग के माध्यम से शांति प्राप्त करने के तरीकों पर चर्चा की गई है। जानें कि ब्राह्मी अवस्था क्या है और इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है।
 

अहंकार की समझ

अहंकार को समझने से पहले हमें अपने अहं को जानना जरूरी है। अहं हमारे असली स्वरूप का प्रतीक है। जैसे, "मैं बच्चा था", "मैं युवा हूँ", "मैं सुख से सोया" आदि में जो 'मैं' है, वह हमारा असली स्वरूप है। जब इस अहं को किसी रूप में ढाल दिया जाता है, तब इसे अहंकार कहा जाता है। जब हम अपने शरीर, संबंध, धन, संपत्ति, या पद को अपने स्वरूप के रूप में मान लेते हैं, तब हम कहते हैं, "मैं धनी हूँ", "मैं अधिकारी हूँ", "मैं पिता हूँ" आदि।


अहंकार का प्रभाव

दर्शन शास्त्र के अनुसार, हमने धन के कारण धनवान, अधिकार के कारण अधिकारी, और पुत्र के कारण पिता का उपाधि धारण कर लिया है। हमारा असली स्वरूप 'अहं' है, जबकि धनी, अधिकारी, पिता जैसे शब्द 'अहंकार' हैं। अहंकार के कारण ही हमारा संसार से संबंध बनता है। हमारा अहंभाव 'मैं' है, जो अहंकार के पीछे छिपा हुआ है। जब हम समझ जाते हैं कि अहंकार जिन उपाधियों से बना है, वे हमारे असली स्वरूप से अलग हैं, तब हम अहंकार की वास्तविकता को समझ पाते हैं।


अहंकार का नाश

अहंकार को समाप्त करके अपने असली स्वरूप को जानना ही जीवन का मुख्य उद्देश्य है। मनुष्य मानता है कि "यह शरीर मैं हूँ" और संसार की वस्तुएं जैसे घर, धन, पद, संबंध आदि उसके हैं। अहंकार के कारण वह जिनको अपना मानता है, उन्हें अपने पास रखना चाहता है, यही ममता है।


निर्ममता का अर्थ

निर्मम का अर्थ दुष्ट होना नहीं है, बल्कि संसार की परिवर्तनशीलता को समझकर वस्तुओं और व्यक्तियों को अपने पास रखने की इच्छा से मुक्त होना है। ममता बंधन का कारण बनती है। ज्ञान साधना में ममता जल जाती है, और भक्ति में इसे ईश्वर के प्रति समर्पित करके इससे छुटकारा पाया जाता है।


कामनाओं का त्याग

भोग से मिले 'रस' का संस्कार चित्त में रहने से पुनः भोग में प्रवृत्त होने की इच्छा स्पृहा कहलाती है। कामनाएँ 'मैं' और 'मेरा' के संबंध से उत्पन्न होती हैं। शांति प्राप्त करने के लिए भगवान ने कामनाओं का त्याग करने का मार्ग बताया है।


शांति की प्राप्ति

कामनाओं का त्याग करने से मनुष्य कर्म से विरत नहीं होता। गीता की शिक्षा के अनुसार, वह निष्काम होकर कर्म करता है। निष्काम कर्म अधिक प्रभावी और व्यापक होते हैं।


ब्राह्मी अवस्था

ऐसी निष्काम अवस्था जहाँ कामना, स्पृहा, ममता और अहंकार न रह जाए, उसे ब्राह्मी अवस्था कहते हैं। यह मानव जीवन की उच्चतम उपलब्धि है। भगवान कहते हैं कि इस अवस्था को प्राप्त करने पर कोई मोहित नहीं होता।


अहंकार का अंत

अहंकार समाप्त होने से असत्य से संबंध विच्छेद हो जाता है और सत्य में अपनी वास्तविक स्थिति का बोध होता है। ब्राह्मी स्थिति प्राप्ति का अर्थ है कि ब्रह्म ही सर्वव्यापक है।


उच्चतम उपलब्धि

एक बार ब्राह्मी स्थिति प्राप्त हो जाने पर वह सदैव बनी रहती है। इसे इसी मानव जीवन में प्राप्त किया जा सकता है, न कि मरणोपरांत किसी अन्य लोक में।