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असम में घुसपैठ विरोधी आंदोलन की रिपोर्ट विधानसभा में पेश होगी

असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने रविवार को घोषणा की कि 1983 में घुसपैठ विरोधी आंदोलन के दौरान हुई हिंसा की घटनाओं की जांच के लिए गठित गैर-सरकारी आयोग की रिपोर्ट विधानसभा में पेश की जाएगी। यह पहली बार होगा जब किसी गैर-सरकारी एजेंसी की रिपोर्ट सदन में प्रस्तुत की जाएगी। इसके अलावा, मंत्रिमंडल ने 27 विधेयकों को भी मंजूरी दी है, जिनमें चाय बागान श्रमिकों को भूमि का पट्टा देने और निजी शिक्षण संस्थानों के शुल्क का विनियमन शामिल है।
 

मुख्यमंत्री का महत्वपूर्ण ऐलान

असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने रविवार को जानकारी दी कि 1983 में घुसपैठ विरोधी असम आंदोलन के दौरान हुई हिंसा की घटनाओं की जांच के लिए गठित गैर-सरकारी आयोग की रिपोर्ट विधानसभा में प्रस्तुत की जाएगी।


उन्होंने बताया कि इस संबंध में प्रस्ताव को राज्य मंत्रिमंडल ने स्वीकृति दे दी है।


मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि यह पहली बार होगा जब किसी गैर-सरकारी एजेंसी द्वारा गठित आयोग की रिपोर्ट विधानसभा में पेश की जाएगी। विधानसभा का पांच दिवसीय सत्र मंगलवार से प्रारंभ होगा।


आयोग की रिपोर्ट का महत्व

शर्मा ने मंत्रिपरिषद की बैठक के बाद आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) टी यू मेहता आयोग की रिपोर्ट को भी सार्वजनिक करने की मांग की है, ताकि सभी पक्षों की जानकारी लोगों तक पहुंच सके।"


मंत्रिमंडल की अन्य स्वीकृतियाँ

आयोग का गठन मुक्ति जुझारु सम्मिलन और आंदोलनकारियों द्वारा किया गया था। मुख्यमंत्री ने कहा कि मंत्रिमंडल ने गैर-सरकारी आयोग की रिपोर्ट को विधानसभा में पेश करने की अनुमति दी है, जिससे पहली बार निजी तौर पर गठित समिति के निष्कर्ष सदन में रखे जाएंगे।


इसके अलावा, मंत्रिमंडल ने लगभग 27 विधेयकों को भी मंजूरी दी है, जिन्हें विधानसभा में प्रस्तुत किया जाएगा। इनमें चाय बागान श्रमिकों को भूमि का पट्टा देने, अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा संचालित निजी शिक्षण संस्थानों के शुल्क का विनियमन, और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन द्वारा एक परोपकारी विश्वविद्यालय की स्थापना से संबंधित विधेयक शामिल हैं।