अरावली पर्वत श्रृंखला का क्षरण: दिल्ली-एनसीआर के लिए गंभीर खतरा
अरावली का महत्व और उसके क्षरण के प्रभाव
अरावली पर्वत श्रृंखला, जो दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक मानी जाती है, दिल्ली-एनसीआर की जलवायु और पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा बनती जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि खनन और अतिक्रमण पर नियंत्रण नहीं पाया गया, तो गर्मियों में लू का प्रकोप, सर्दियों में ठंड की तीव्रता और सालभर प्रदूषण का स्तर और बढ़ जाएगा।
यह पर्वत श्रृंखला, जो गुजरात से दिल्ली तक लगभग 700 किलोमीटर तक फैली हुई है, थार मरुस्थल की गर्म हवाओं और रेत को रोकने का कार्य करती है। यह दिल्ली-एनसीआर के लिए एक 'ग्रीन लंग्स' के रूप में कार्य करती है, जो धूल कणों को रोककर प्रदूषण को नियंत्रित करती है और भूजल के पुनर्भरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में अवैध और वैध खनन, वनों की कटाई और शहरीकरण के कारण यह श्रृंखला तेजी से क्षरण का शिकार हो रही है।
जलवायु पर प्रभाव और विशेषज्ञों की चेतावनी
पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, अरावली के क्षरण के कारण पहले से ही 12 बड़े गैप बन चुके हैं, जिनसे थार की रेत सीधे दिल्ली-एनसीआर में पहुंच रही है। इससे गर्मियों में तापमान 2-3 डिग्री तक बढ़ जाता है, लू की तीव्रता में वृद्धि होती है और धूल भरी आंधियों का आना सामान्य हो जाता है। सर्दियों में ठंडी हवाओं का प्रवाह बाधित होने से ठंड बढ़ जाती है और प्रदूषण स्मॉग के रूप में परिवर्तित हो जाता है। जलवायु वैज्ञानिक डॉ. मनीष कुमार का कहना है, "अरावली का क्षरण दिल्ली की वायु गुणवत्ता, जल सुरक्षा और मौसम को सीधे प्रभावित कर रहा है। यदि यह दीवार टूटी, तो मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया तेज हो जाएगी और प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच जाएगा।"
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और सरकार की प्राथमिकताएं
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की नई परिभाषा को लेकर एक विवादास्पद निर्णय दिया था, जिसमें 100 मीटर से ऊंची पहाड़ियों को ही संरक्षित माना गया। इससे 90% क्षेत्र संरक्षण से बाहर हो सकता था, लेकिन 29 दिसंबर को कोर्ट ने अपने नवंबर के फैसले को स्थगित कर नई विशेषज्ञ समिति गठित करने का संकेत दिया। केंद्र सरकार ने भी स्पष्ट किया है कि अरावली में कोई नई खनन लीज नहीं दी जाएगी। पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा, "अरावली की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है।"
पर्यावरण कार्यकर्ताओं की चेतावनी
पर्यावरण कार्यकर्ता विक्रांत टोंगड़ ने चेतावनी दी है, "अरावली न केवल मरुस्थल को रोकती है, बल्कि मानसून को प्रभावित कर बारिश सुनिश्चित करती है। इसका विनाश दिल्ली को अर्ध-मरुस्थलीय बना सकता है।" जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा, "यदि अरावली टूटी, तो दिल्ली का मौसम बिगड़ जाएगा – लू, ठंड और प्रदूषण तीनों का प्रकोप बढ़ेगा।"