अयोध्या विवाद पर पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ के बयान से उठे नए सवाल
पूर्व अमेरिकी न्यायाधीश का दृष्टिकोण
प्रसिद्ध कानूनी विशेषज्ञ और पूर्व अमेरिकी न्यायाधीश रिचर्ड एलन पॉसनर ने एक बार कहा था कि हमें न्यायाधीशों को मानव के रूप में देखना चाहिए, न कि किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में जो दुनिया को बदलने की कोशिश कर रहा हो या एक संत के रूप में जो सभी मानवीय कमजोरियों से मुक्त हो। इसी संदर्भ में, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में बाबरी मस्जिद के निर्माण को उस स्थान की पवित्रता को नष्ट करने वाला बताया। उनके इस बयान के बाद विवादों की एक नई श्रृंखला शुरू हो गई है। प्रोफेसर मदन जी मोहन गोपाल ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पूर्व सीजेआई की यह टिप्पणी क्यूरेटिव याचिका का आधार बन सकती है, जिससे अयोध्या विवाद एक बार फिर से अदालत में जा सकता है।
पूर्व सीजेआई का अयोध्या पर बयान
पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने एक साक्षात्कार में अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय के बारे में बात करते हुए कहा कि बाबरी मस्जिद का निर्माण एक बुनियादी रूप से अपवित्र कार्य था। इसके बाद, उन्होंने मुंबई में इंडिया टुडे कॉनक्लेव में कहा कि उनके शब्दों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है, जिससे उनके विचार का संदर्भ बदल गया है। उन्होंने यह भी कहा कि सोशल मीडिया पर लोग उनके बयान के एक हिस्से को उठाकर उसे संदर्भ से बाहर कर रहे हैं।
क्यूरेटिव याचिका का महत्व
प्रोफेसर डॉ मोहन जी गोपाल ने कहा कि पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ की हालिया टिप्पणी अयोध्या राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय में क्यूरेटिव याचिका दायर करने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान कर सकती है। उन्होंने कहा कि चंद्रचूड़ की यह टिप्पणी अत्यंत महत्वपूर्ण है। 2019 में, सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने राम मंदिर मामले में निर्णय सुनाया था।
क्यूरेटिव याचिका क्या होती है?
जब सुप्रीम कोर्ट कोई निर्णय सुनाता है, तो पहले रिव्यू याचिका दायर की जा सकती है। यदि किसी पार्टी को निर्णय में कोई आपत्ति है, तो वह कोर्ट से पुनर्विचार की मांग कर सकती है। रिव्यू याचिका को निर्णय के तीस दिन के भीतर दायर करना होता है। वहीं, क्यूरेटिव याचिका एक अंतिम कानूनी विकल्प होती है, जिसका दायरा रिव्यू याचिका की तुलना में बहुत सीमित होता है। यह तब उपयोगी होती है जब ऐसा लगे कि निर्णय देते समय नैचुरल जस्टिस के सिद्धांत को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट का 2019 का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में अपने निर्णय में आस्था को प्राथमिकता दी। न्यायालय ने कहा कि आस्था व्यक्तिगत होती है और यह भूमि विवाद का समाधान नहीं कर सकता। अंततः विवादित भूमि को एक हिंदू मंदिर के निर्माण के लिए सौंप दिया गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि मुस्लिम पक्ष यह साबित करने में असफल रहा कि बाबरी मस्जिद वाले स्थान पर उनका कोई निरंतर मालिकाना हक था।
क्या फिर से सुनवाई संभव है?
अयोध्या मामले के निर्णय को छह साल हो चुके हैं। केवल एक साक्षात्कार में पूर्व जज के बयान के आधार पर क्यूरेटिव याचिका पर फिर से सुनवाई होना मुश्किल है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि क्यूरेटिव याचिका को कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। इसके अलावा, यदि किसी पार्टी को निर्णय से ठेस पहुंची है, तो छह सालों का विलंब क्यों हुआ, यह भी महत्वपूर्ण है।