अमेरिका के बढ़ते कर्ज का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
अमेरिका का कर्ज: एक नई चिंता
नई दिल्ली: अमेरिका का बढ़ता कर्ज अब एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। चीन का अमेरिकी कर्ज से बाहर निकलना और भी अधिक चिंताजनक हो गया है, जिससे वैश्विक आर्थिक स्थिरता पर खतरा मंडरा रहा है। इससे डॉलर की स्थिति कमजोर हो सकती है। इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है: जब दुनिया का सबसे बड़ा कर्जदार धीरे-धीरे अपने कर्ज चुकाने में असफल होने लगे, तो इसका परिणाम क्या होगा? निवेश बैंकर सार्थक आहूजा के अनुसार, यह प्रश्न जल्द ही वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है। बड़े देश अमेरिका से अपने निवेश निकालने की प्रक्रिया में हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने चेतावनी दी है कि अमेरिकी कर्ज का जाल अब हाथ से निकलता जा रहा है। आहूजा ने अपने लिंक्डइन पोस्ट में स्पष्ट रूप से चेतावनी दी है कि अमेरिका पर यूरोप, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका की कुल जीडीपी से भी अधिक कर्ज है, जो हर अमेरिकी पर 100,000 डॉलर से अधिक का बोझ डालता है।
कर्ज का बढ़ता बोझ
यह चेतावनी आईएमएफ द्वारा अमेरिका के 36 ट्रिलियन डॉलर के संघीय कर्ज के हालिया आंकड़ों के बाद आई है। यह कर्ज मुख्य रूप से 2008 के आर्थिक संकट के बाद के बेलआउट, रिकॉर्ड रक्षा खर्च और महामारी के दौरान दिए गए प्रोत्साहन पैकेजों के कारण बढ़ा है। अब अमेरिका के प्रमुख कर्जदार अपने पैसे वापस मांग रहे हैं। चीन, जापान, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देश धीरे-धीरे अमेरिकी ट्रेजरी बॉंड्स बेचना शुरू कर चुके हैं। आहूजा ने लिखा है कि चीन, जो अमेरिका का सबसे बड़ा कर्जदार है, पहले ही इस प्रक्रिया में शामिल हो चुका है, और जापान भी इसी दिशा में बढ़ रहा है।
ब्याज दरों का संकट
अमेरिका निवेशकों को बनाए रखने के लिए ब्याज दरें बढ़ा रहा है, लेकिन इससे संकट और गहरा हो रहा है। अब सालाना ब्याज भुगतान 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक हो गया है, जो पेंटागन के बजट से भी ज्यादा है। वैश्विक पूंजी प्रवाह में यह बदलाव पहले से ही स्पष्ट हो रहा है, और केंद्रीय बैंक सोने की ओर रुख कर रहे हैं। उभरते बाजारों में चीनी युआन व्यापारिक मुद्रा के रूप में अपनी जगह बना रहा है।
अमेरिका के पास विकल्प
आहूजा अमीरों पर टैक्स बढ़ाने का सुझाव देते हैं, लेकिन वे यह भी बताते हैं कि टैक्स में छूट जारी है। रक्षा, स्वास्थ्य सेवा या कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च में कटौती से अशांति फैल सकती है। वास्तव में, अंतिम उपाय टैरिफ और आप्रवासन में कटौती जैसा कदम लग रहा है, जो अमेरिका को और अलग-थलग करने का जोखिम उठाता है। आहूजा चेतावनी देते हैं कि यदि यह स्थिति जारी रही, तो डॉलर का अवमूल्यन शुरू हो सकता है, जिससे दुनिया अन्य विकल्पों की ओर बढ़ सकती है।
भारत की रणनीति
भारत को इस संभावित डॉलर संकट से बचने के लिए एक बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी। इसका पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम डी-डॉलराइजेशन है, जिसमें भारत को रूस और यूएई जैसे देशों के साथ स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा देना होगा। दूसरा, भारत को 'मेक इन इंडिया' और पीएआई योजनाओं के माध्यम से एक विश्वसनीय वैश्विक निर्माण केंद्र बनकर विदेशी निवेश को आकर्षित करना होगा। तीसरा, भारतीय रिजर्व बैंक को अपने विदेशी मुद्रा भंडार का कुशल प्रबंधन करना होगा, जिसमें सोने और अन्य मजबूत मुद्राओं की हिस्सेदारी बढ़ाकर जोखिम को कम करना शामिल है। इसके साथ ही, राजकोषीय अनुशासन बनाए रखना और उच्च विकास दर हासिल करना आवश्यक है ताकि रुपये का आंतरिक मूल्य स्थिर रहे।