अंडे के सेवन पर विचार: स्वास्थ्य और धार्मिक दृष्टिकोण
अंडे का सेवन और उसके प्रभाव
आजकल यह देखकर आश्चर्य होता है कि अंडा शाकाहार का प्रतीक बन गया है। ब्राह्मणों से लेकर जैनियों तक ने अंडा खाना शुरू कर दिया है। सीधे मुद्दे पर आते हैं, लड़कियों में 10 से 15 साल की उम्र में अंडाशय में हर महीने एक विकसित अंडा उत्पन्न होता है। यह अंडा अंडवाहिका नली के माध्यम से गर्भाशय तक पहुंचता है। जब अंडा गर्भाशय में पहुंचता है, तो उसका अस्तर रक्त और तरल पदार्थ से गाढ़ा हो जाता है, ताकि यदि अंडा उर्वरित हो जाए, तो वह विकसित हो सके। यदि अंडा उर्वरित नहीं होता है, तो यह स्राव बनकर बाहर निकल जाता है, जिसे मासिक धर्म कहा जाता है।
मासिक धर्म और उसके धार्मिक नियम
अन्य मादा स्तनधारियों में भी अंडोत्सर्जन एक चक्र के रूप में होता है, जैसे मनुष्यों में यह महीने में एक बार होता है। इन दिनों में महिलाओं को पूजा-पाठ और रसोई से दूर रखा जाता है। शास्त्रों में भी इन नियमों का उल्लेख है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, मासिक स्राव के दौरान महिलाओं में मादा हार्मोन (estrogen) की अधिकता होती है।
मुर्गी के अंडे का विश्लेषण
पक्षियों में भी अंडोत्सर्जन एक चक्र के रूप में होता है, लेकिन यह ठोस रूप में अंडे के रूप में बाहर आता है। सीधे शब्दों में कहें तो अंडा मुर्गी की माहवारी है और इसमें मादा हार्मोन की अधिकता होती है। आधुनिक तकनीक के कारण मुर्गियों को निषेधित ड्रग ओक्सिटोसिन का इंजेक्शन दिया जाता है, जिससे वे लगातार अनिषेचित अंडे देती हैं।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
अंडों का सेवन पुरुषों में हार्मोन असंतुलन, नपुंसकता, और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। महिलाओं में अनियमित मासिक धर्म और गर्भाशय कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। अंडों में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा भी हृदय रोग का कारण बन सकती है।
शाकाहार का महत्व
अंडों के सेवन के बजाय दूध और अन्य पौधों के खाद्य पदार्थों का सेवन करना अधिक लाभकारी है। आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से भी अंडे का सेवन अनुचित है। इसलिए, शाकाहारी बने रहना ही बेहतर है।
एक कविता
गर्व था भारत-भूमि को कि महावीर की माता हूँ। राम-कृष्ण और नानक जैसे वीरो की यशगाथा हूँ।