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राहुल गांधी पर पूर्व न्यायाधीशों और अधिकारियों का हमला

एक समूह जिसमें पूर्व न्यायाधीश और सेवानिवृत्त अधिकारी शामिल हैं, ने राहुल गांधी पर निर्वाचन आयोग की गरिमा को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि गांधी की बयानबाजी चुनावी असफलताओं से उपजी हताशा को दर्शाती है। इस बयान में यह भी उल्लेख किया गया है कि गांधी ने आयोग के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हैं, लेकिन औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं की। जानें इस विवाद के पीछे की पूरी कहानी और इसके राजनीतिक प्रभाव।
 

पूर्व न्यायाधीशों और सेवानिवृत्त अधिकारियों का बयान

एक समूह जिसमें पूर्व न्यायाधीश, सेवानिवृत्त नौकरशाह और सशस्त्र बल के पूर्व अधिकारी शामिल हैं, ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर आरोप लगाया है कि वह चुनावी असफलताओं के चलते निर्वाचन आयोग की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।


इन 272 हस्तियों ने एक संयुक्त बयान में कहा कि लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने ‘वोट चोरी’ के आरोपों के संबंध में निर्वाचन आयोग पर बार-बार हमले किए हैं और यह भी कहा है कि जब आयोग के अधिकारी सेवानिवृत्त होंगे, तो वह उन्हें परेशान करेंगे।


बयान में यह भी उल्लेख किया गया है कि राहुल गांधी द्वारा लगाए गए गंभीर आरोपों के बावजूद, उन्होंने किसी औपचारिक शिकायत के साथ शपथपत्र नहीं दिया है, जिससे यह प्रतीत होता है कि वह अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे लोक सेवकों को धमकाने से बचना चाहते हैं।


इस बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में राष्ट्रीय हरित अधिकरण के अध्यक्ष आदर्श कुमार गोयल, पूर्व न्यायाधीश एस एन ढींगरा, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता, न्यायमूर्ति राजीव लोचन, खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ के पूर्व प्रमुख संजीव त्रिपाठी और एनआईए के पूर्व निदेशक वाई सी मोदी शामिल हैं।


बयान में यह भी कहा गया है कि यह व्यवहार चुनावी असफलताओं और हताशा के कारण उत्पन्न गुस्से को दर्शाता है, जिसमें लोगों से जुड़ने की कोई ठोस योजना नहीं है।


उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों के कई वरिष्ठ नेता और वामपंथी झुकाव वाले गैर-सरकारी संगठन मतदाता सूचियों के गहन पुनरीक्षण के खिलाफ इसी तरह की तीखी बयानबाजी में राहुल गांधी के साथ शामिल हुए हैं, और आयोग को ‘भाजपा की बी-टीम’ करार दिया गया है।


बयान में कहा गया है कि ऐसी उग्र बयानबाजी भावनात्मक रूप से प्रभावी हो सकती है, लेकिन जांच के दौरान यह ध्वस्त हो जाती है, क्योंकि निर्वाचन आयोग ने अपनी एसआईआर कार्यप्रणाली को सार्वजनिक रूप से साझा किया है और अदालत द्वारा अनुमोदित तरीकों से सत्यापन की निगरानी की है।