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प्रियंका गांधी की चाय पर चर्चा: कांग्रेस में नई शक्ति का उदय

संसद सत्र के समापन के बाद प्रियंका गांधी की चाय पर चर्चा ने कांग्रेस में नई शक्ति का संकेत दिया है। पहली बार सांसद बनी प्रियंका ने पीएम मोदी के साथ बातचीत की, जबकि राहुल गांधी इस अवसर से अनुपस्थित रहे। प्रियंका की सक्रियता और पुराने नेताओं को फिर से पार्टी में शामिल करने की कोशिशों ने कांग्रेस में दो शक्ति केंद्रों की चर्चा को जन्म दिया है। क्या प्रियंका की यह नई भूमिका पार्टी की दिशा को बदल देगी? जानें इस लेख में।
 

कांग्रेस में प्रियंका गांधी की बढ़ती भूमिका


नई दिल्ली: संसद सत्र के समापन के बाद 'चाय पे चर्चा' की तस्वीरों ने कांग्रेस के भीतर एक नई कहानी को उजागर किया है। आमतौर पर, पीएम और स्पीकर पहले पंक्ति में होते हैं, लेकिन इस बार पहली बार सांसद बनीं प्रियंका गांधी का वहां होना एक महत्वपूर्ण घटना है। प्रियंका न केवल पहली पंक्ति में बैठीं, बल्कि उन्होंने पीएम मोदी के साथ चाय की चुस्की लेते हुए बातचीत भी की।

इस बीच, राहुल गांधी इस महत्वपूर्ण और अनौपचारिक अवसर से पूरी तरह अनुपस्थित रहे। प्रियंका का यह व्यवहार उनकी बढ़ती ताकत और पार्टी पर पकड़ को दर्शाता है। वे सदन में पहली बार आई हैं, लेकिन उनका प्रभाव पुराने नेताओं से कहीं अधिक स्पष्ट है। प्रियंका ने सदन में नितिन गडकरी से भी मुलाकात की, और वे उन पुराने नेताओं को फिर से पार्टी में शामिल कर रही हैं जिन्हें राहुल ने किनारे कर दिया था। कांग्रेस में अब दो शक्ति केंद्रों की चर्चा तेज हो गई है। प्रियंका की सक्रियता और राहुल की अनुपस्थिति ने पार्टी के भीतर एक नई बहस को जन्म दिया है।

क्या चाय की चुस्की ने कांग्रेस की पुरानी परंपरा को बदल दिया है?
संसद सत्र के समापन पर स्पीकर की चाय की दावत में प्रियंका गांधी वाड्रा पहली पंक्ति में बैठी नजर आईं। उनके पीछे कई अनुभवी नेता जैसे सुप्रिया सुले बैठे थे। प्रियंका ने पीएम मोदी के साथ सहजता से बातचीत की।

सूत्रों के अनुसार, दोनों के बीच वायनाड को लेकर चर्चा हुई। राहुल गांधी अक्सर ऐसी अनौपचारिक मुलाकातों से दूर रहते हैं, जबकि प्रियंका हर मौके का राजनीतिक लाभ उठाना जानती हैं। उनकी 'चाय पॉलिटिक्स' राहुल की शैली से बिल्कुल भिन्न है। वे सार्वजनिक उपस्थिति और ऑप्टिक्स के महत्व को समझती हैं, यही कारण है कि उनकी मौजूदगी ने सभी का ध्यान खींचा।

क्या नितिन गडकरी से मुलाकात प्रियंका की एक सोची-समझी रणनीति थी?
सदन में प्रियंका का व्यवहार बहुत ही संतुलित रहा है। उन्होंने एक दिन पहले ही नितिन गडकरी से मिलने का समय मांगा था। उन्हें अपने क्षेत्र वायनाड के एक हाईवे प्रोजेक्ट पर चर्चा करनी थी। गडकरी ने मुस्कुराते हुए उन्हें अपने ऑफिस आने का न्योता दिया। दोनों की मुलाकात गर्मजोशी से हुई।

यह प्रियंका की विपक्षी नेताओं के साथ तालमेल बनाने की कला को दर्शाता है। राहुल गांधी अक्सर आक्रामक और तीखे तेवर अपनाते हैं, जबकि प्रियंका विनम्रता से अपने कार्य को पूरा कर लेती हैं। वे रोजाना सुबह 9.30 बजे संसद पहुंचती हैं, और मीडिया में उनकी कवरेज अब राहुल से कहीं अधिक है।

क्या प्रियंका ने राहुल के किनारे किए गए नेताओं को फिर से मुख्यधारा में लाया?
कांग्रेस में मनीष तिवारी और शशि थरूर जैसे नेता काफी समय से साइडलाइन थे। प्रियंका ने उन्हें फिर से पार्टी की रणनीति में शामिल किया है। उन्होंने महसूस किया कि पार्टी के सक्षम वक्ताओं को दूर रखना बीजेपी को लाभ पहुंचाता है। प्रियंका की पहल पर मनीष तिवारी ने सदन में कई महत्वपूर्ण बिलों पर चर्चा की। शशि थरूर भी अब सदन के अंदर और बाहर सक्रिय दिख रहे हैं। प्रियंका भी अपनी मां सोनिया गांधी की तरह सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखती हैं। वे पार्टी के भीतर की पुरानी गुटबाजी को समाप्त करने की कोशिश कर रही हैं, जिससे पार्टी को बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत और एकजुट आवाज मिल रही है।

क्यों बीजेपी को अब राहुल गांधी से ज्यादा प्रियंका गांधी से डर लग रहा है?
बीजेपी के कई नेता अक्सर राहुल गांधी के बयानों का मजाक उड़ाते हैं, लेकिन प्रियंका को निशाना बनाना उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। प्रियंका का व्यवहार संयमित और प्रभावशाली है। वे सदन में सीधे पीएम मोदी को चुनौती देने से नहीं कतराती हैं, लेकिन उनका तरीका शालीन और तार्किक होता है। वे किसी भी नेता से लंबे समय तक व्यक्तिगत नाराजगी नहीं रखती हैं। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी प्रियंका के प्रति सकारात्मक रहे हैं।

क्या कांग्रेस में अब राहुल और प्रियंका के रूप में दो शक्ति केंद्र बन चुके हैं?
विंटर सत्र के खत्म होने तक कांग्रेस के भीतर की स्थिति पूरी तरह बदल गई है। पार्टी के कई बड़े नेता अब प्रियंका गांधी में अपना भविष्य देख रहे हैं। कई लोग दबी जुबान में कह रहे हैं कि कांग्रेस में अब दो शक्ति केंद्र बन चुके हैं। राहुल गांधी पार्टी का वैचारिक चेहरा और कैंपेनर बने रहेंगे, लेकिन पार्टी का दैनिक प्रबंधन और रणनीतिक निर्णय प्रियंका के हाथ में जा सकते हैं। कई नेता अब अपनी शिकायतें और सुझाव लेकर प्रियंका के पास जा रहे हैं। उनकी सहजता और काम करने का तरीका पुराने कांग्रेसी कल्चर से मेल खाता है। आने वाले समय में प्रियंका की भूमिका पार्टी में और भी अधिक निर्णायक होने वाली है.