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चिराग पासवान: राजनीति में पिता की विरासत को संभालते हुए

चिराग पासवान, जो आज अपना 43वां जन्मदिन मना रहे हैं, ने अपने पिता रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत को संभालते हुए बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। फिल्मी करियर में असफलता के बाद, उन्होंने राजनीति में कदम रखा और जमुई लोकसभा सीट से बड़ी जीत हासिल की। उनके जीवन में पारिवारिक विवाद भी शामिल हैं, खासकर अपने चाचा के साथ। जानें उनके जीवन की और भी दिलचस्प बातें और समाज सेवा में उनकी भूमिका।
 

चिराग पासवान का जन्मदिन

फिल्म उद्योग से अपने करियर की शुरुआत करने वाले चिराग पासवान आज, 31 अक्टूबर को अपने 43वें जन्मदिन का जश्न मना रहे हैं। बिहार की राजनीति में तेजी से उभरते हुए नेता के रूप में चिराग का नाम लिया जाता है। उन्होंने बहुत कम समय में राजनीतिक क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है। चिराग की राजनीतिक क्षमता को केवल उनके पिता रामविलास पासवान के बेटे होने के आधार पर नहीं आंका जा सकता, बल्कि उन्होंने अपनी योग्यता को कई बार साबित किया है। वर्तमान में, वह बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण शख्सियत माने जाते हैं। आइए, उनके जन्मदिन के अवसर पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ दिलचस्प जानकारियों पर नजर डालते हैं।


जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि

चिराग पासवान का जन्म 31 अक्टूबर 1982 को दिल्ली में हुआ। उनके पिता रामविलास पासवान, जो एक प्रमुख राजनीतिक हस्ती थे, ने चिराग को शिक्षा के प्रति प्रेरित किया। चिराग ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली में प्राप्त की और वहीं से इंजीनियरिंग की डिग्री भी हासिल की। फिल्मी करियर बनाने की चाहत में, उन्होंने कई फिल्मों में अभिनय किया, लेकिन उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली। इसके बाद, उन्होंने अपने पिता के साथ राजनीति में कदम रखा।


फिल्मी करियर

चिराग पासवान ने 2011 में अभिनेत्री कंगना रनौत के साथ फिल्म 'मिले ना मिले हम' से अपने करियर की शुरुआत की। इस फिल्म में चिराग ने मुख्य भूमिका निभाई, लेकिन इसे दर्शकों से सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली, जिससे यह फिल्म असफल रही। इस फिल्म में कंगना के अलावा सागरिका घाटे, कबीर बेदी, पूनम ढिल्लो और नीरू बाजवा भी शामिल थे।


राजनीतिक यात्रा

पहली फिल्म की असफलता के बाद, चिराग ने अपने पिता के साथ राजनीति में सक्रियता दिखाई। 2014 में, उन्होंने जमुई लोकसभा सीट से लोजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और बड़ी जीत हासिल की। उन्होंने सुधांशु शेखर भास्कर को 85,000 से अधिक मतों से हराया। 2019 में भी चिराग ने जमुई सीट पर अपनी स्थिति बनाए रखी।


पारिवारिक विवाद

2019 के लोकसभा चुनाव में रामविलास पासवान के निधन के बाद, चिराग का अपने चाचा पशुपति कुमार पारस से मतभेद हो गया। 14 जून 2021 को, चिराग के चाचा ने खुद को लोकसभा में नेता घोषित कर दिया। इसके बाद, चिराग ने अपने चाचा और पांच बागी सांसदों को पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण निष्कासित कर दिया।


आगे की राजनीति

2024 के लोकसभा चुनाव में, चिराग पासवान ने हाजीपुर लोकसभा सीट से 1.70 लाख वोटों से जीत हासिल की। इसके साथ ही, उन्होंने पीएम मोदी की कैबिनेट में मंत्री के रूप में शपथ ली। राजनीति के अलावा, चिराग समाज सेवा में भी सक्रिय हैं। वह 'चिराग का रोजगार' नामक एक एनजीओ का संचालन करते हैं, जो बिहार के बेरोजगार युवाओं को रोजगार प्रदान करने का कार्य करता है।