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OPEC+ का नया फैसला: भारत पर पड़ने वाले प्रभावों की समीक्षा

OPEC+ ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जिसका सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ने की संभावना है। रूस सहित आठ प्रमुख देशों ने तेल उत्पादन में वृद्धि को रोकने का फैसला किया है, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की आपूर्ति सीमित हो सकती है। इस स्थिति का भारत पर कई मोर्चों पर प्रभाव पड़ेगा, जैसे कि महंगाई में वृद्धि, आयात बिल का बढ़ना और रुपये की कमजोरी। जानें इस निर्णय के संभावित परिणाम और भारत की आर्थिक स्थिति पर इसके प्रभाव के बारे में।
 

भारत पर प्रभाव

भारत पर सीधे होगा असर

OPEC+ तेल उत्पादन: पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लेकर एक बार फिर चिंता बढ़ने वाली खबर सामने आई है। ओपेक+ के समूह ने एक ऐसा निर्णय लिया है जिसका भारत पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ने की संभावना है। एक रिपोर्ट के अनुसार, रविवार को हुई एक महत्वपूर्ण बैठक में रूस सहित आठ प्रमुख देशों ने तय किया कि वे तेल उत्पादन की वृद्धि को रोक देंगे। यह निर्णय 2026 की शुरुआत से लागू होगा। विशेषज्ञ इसे संकेत मान रहे हैं कि आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की आपूर्ति सीमित रहेगी, जिससे कीमतें बढ़ सकती हैं। जब कच्चा तेल महंगा होता है, तो भारत में महंगाई बढ़ने लगती है।


ओपेक+ का निर्णय क्या है?

यह समझना आवश्यक है कि ओपेक+ (OPEC+) क्या है। यह 22 तेल उत्पादक और निर्यातक देशों का एक प्रभावशाली गठबंधन है। सरल शब्दों में, ये वे देश हैं जिनके पास तेल के बड़े भंडार हैं और ये मिलकर तय करते हैं कि बाजार में कितना तेल भेजना है। इनका मुख्य उद्देश्य कच्चे तेल की कीमतों को स्थिर रखना और वैश्विक बाजार में संतुलन बनाए रखना है। जब कीमतें गिरती हैं, तो ये उत्पादन घटाते हैं और जब कीमतें बढ़ती हैं, तो उत्पादन बढ़ाते हैं।

रविवार को इसी समूह के आठ देशों ने बैठक की। यह बैठक ऐसे समय में हुई है जब दुनिया भर में तेल की मांग और आपूर्ति को लेकर बहस चल रही है और कीमतें लगातार बदल रही हैं। इसलिए इस बैठक के निर्णय पर भारत जैसे बड़े खरीदारों की नजर थी।


दिसंबर में मामूली राहत, फिर ब्रेक

बैठक में जो निर्णय लिया गया, वह दो भागों में विभाजित है। पहले भाग में, दिसंबर में तेल उत्पादन में हर दिन 137,000 बैरल की मामूली वृद्धि की जाएगी। हालांकि, यह वृद्धि इतनी कम है कि इससे वैश्विक मांग को पूरा नहीं किया जा सकेगा।

लेकिन असली चिंता इसके बाद शुरू होती है। दूसरे भाग में कहा गया है कि दिसंबर की इस मामूली वृद्धि के बाद, अगले साल की पहली तिमाही में उत्पादन बढ़ाने की गति पर पूरी तरह से रोक लगा दी जाएगी। इसका मतलब है कि तीन महीनों तक बाजार में अतिरिक्त तेल नहीं आएगा, जिससे कीमतों को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाएगा।


भारत पर चौतरफा प्रभाव

अब सवाल यह है कि इस निर्णय का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा? इसका उत्तर हमारी अर्थव्यवस्था की संरचना में छिपा है। भारत अपनी जरूरत का 85% से अधिक कच्चा तेल आयात करता है। जब ओपेक+ जैसे बड़े खिलाड़ी उत्पादन रोकने का निर्णय लेते हैं, तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कमी की आशंका बढ़ जाती है। मांग स्थिर रहती है, लेकिन आपूर्ति कम हो जाती है, जिससे कीमतें बढ़ने लगती हैं। कच्चे तेल की ऊंची कीमतें भारत के लिए कई समस्याएं उत्पन्न कर सकती हैं।

  1. पहला प्रभाव: आपकी जेब पर। कच्चा तेल महंगा होने से रिफाइनरियों की लागत बढ़ेगी, जिसका असर पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों पर पड़ेगा। इससे दैनिक जीवन की वस्तुओं की कीमतें भी बढ़ सकती हैं।
  2. दूसरा प्रभाव: देश के खजाने पर। भारत को कच्चा तेल खरीदने के लिए डॉलर में भुगतान करना होता है। जब तेल महंगा होगा, तो हमें अधिक डॉलर खर्च करने होंगे, जिससे आयात बिल बढ़ेगा।
  3. तीसरा प्रभाव: रुपये की कमजोरी। जब डॉलर की मांग बढ़ती है, तो भारतीय रुपया कमजोर हो जाता है। इससे हमें कच्चे तेल के लिए अधिक रुपये चुकाने पड़ते हैं।


क्या रूस से मिलने वाली छूट भी कम होगी?

इस मामले में एक और जटिलता है, जो रूस से संबंधित है। हाल के समय में रूस भारत को डिस्काउंट पर कच्चा तेल दे रहा है, जिससे महंगाई में कुछ राहत मिली है। लेकिन कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यदि ओपेक+ के इस निर्णय के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें ऊंची बनी रहती हैं, तो रूस भारत को दिए जाने वाले डिस्काउंट में कटौती कर सकता है। यदि ऐसा होता है, तो यह भारत के लिए एक बड़ा झटका होगा।