भारत का दृष्टिकोण: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा और सहयोग की आवश्यकता
रक्षा मंत्री का बयान
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शनिवार को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधियों के संदर्भ में वैश्विक चिंताओं को देखते हुए कहा कि भारत का मानना है कि यह क्षेत्र खुला, समावेशी और किसी भी प्रकार के दबाव से मुक्त होना चाहिए।
सामूहिक सुरक्षा का महत्व
कुआलालंपुर में आसियान देशों और उनके वार्ता साझेदारों के रक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में बोलते हुए, सिंह ने सभी देशों की संप्रभुता की रक्षा के लिए 'सामूहिक सुरक्षा' के दृष्टिकोण पर जोर दिया।
यूएनसीएलओएस का पालन
उन्होंने कहा कि भारत का संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (यूएनसीएलओएस) के पालन पर जोर और नौवहन तथा उड़ान की स्वतंत्रता का समर्थन सभी क्षेत्रीय हितधारकों के हितों की रक्षा के लिए है, न कि किसी विशेष देश के खिलाफ।
दक्षिण चीन सागर में स्थिति
यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब आसियान के कई सदस्य और लोकतांत्रिक देश विवादित दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधियों के बीच यूएनसीएलओएस के पालन की मांग कर रहे हैं।
भविष्य की सुरक्षा के लिए दृष्टिकोण
सिंह ने कहा कि भारत आसियान के नेतृत्व वाले समावेशी क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य की सुरक्षा केवल सैन्य क्षमताओं पर निर्भर नहीं करेगी, बल्कि साझा संसाधनों के प्रबंधन, डिजिटल और भौतिक बुनियादी ढांचे की सुरक्षा, और मानवीय संकटों के प्रति सामूहिक प्रतिक्रिया पर निर्भर करेगी।
एडीएमएम-प्लस संवाद
सिंह ने एडीएमएम-प्लस रणनीतिक संवाद को व्यावहारिक परिणामों से जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया और इसे क्षेत्र में शांति और साझा समृद्धि की दिशा में एक सेतु के रूप में देखा। उन्होंने कहा, 'भारत इस ढांचे में अपनी भूमिका को साझेदारी और सहयोग की भावना से देखता है। हमारा दृष्टिकोण लेन-देन वाला नहीं, बल्कि दीर्घकालिक और सिद्धांत-आधारित है।'