BSNL को ₹1,357 करोड़ का घाटा: क्या हैं इसके कारण और भविष्य की संभावनाएं?
BSNL को हुआ बड़ा नुकसान
BSNL को हुआ बड़ा नुकसान
भारत की प्रमुख टेलीकॉम कंपनी बीएसएनएल को हाल ही में एक बड़ा वित्तीय घाटा झेलना पड़ा है। मिंट की रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर में समाप्त तिमाही में बीएसएनएल को ₹1,357 करोड़ का नुकसान हुआ है। इससे पहले जून तिमाही में कंपनी को ₹1,049 करोड़ का घाटा हुआ था। यह आंकड़ा पिछले वर्ष की इसी तिमाही के मुकाबले (₹1,241.7 करोड़) काफी अधिक है। जब कंपनी 4G सेवाएं शुरू कर रही है और नेटवर्क में सुधार कर रही है, तो यह घाटा क्यों बढ़ रहा है, यह एक बड़ा सवाल है।
BSNL के घाटे के कारण
बीएसएनएल के बढ़ते घाटे के पीछे कई कारण हैं। सबसे प्रमुख कारण है ‘डेप्रिसिएशन’ और नेटवर्क संचालन में आने वाला खर्च। सरल शब्दों में, बीएसएनएल ने अपने नेटवर्क को अपग्रेड करने के लिए भारी निवेश किया है। जब कोई कंपनी इतना बड़ा खर्च करती है, तो उसकी संपत्तियों की वैल्यू कम होने (डेप्रिसिएशन) और ब्याज का खर्च बढ़ जाता है। आंकड़ों के अनुसार, कंपनी का डेप्रिसिएशन और अमॉर्टाइजेशन खर्च ₹2,477 करोड़ रहा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 57% अधिक है। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पहले ही बताया था कि बीएसएनएल ने इस वर्ष ₹25,000 करोड़ का भारी-भरकम कैपेक्स किया है, जिसका असर बैलेंस शीट पर स्पष्ट रूप से दिखाई देगा।
बीएसएनएल के लिए सकारात्मक संकेत
हालांकि, बीएसएनएल के लिए कुछ सकारात्मक संकेत भी हैं। कंपनी की ऑपरेशन्स से होने वाली कमाई में सुधार हुआ है। 4G सेवाओं की लॉन्चिंग का असर अब दिखने लगा है।
- रेवेन्यू में बढ़ोतरी: कंपनी की आय सालाना आधार पर 6.6% बढ़कर ₹5,166.7 करोड़ हो गई है।
- ARPU में उछाल: एक यूजर से होने वाली औसत कमाई (ARPU) ₹81 से बढ़कर ₹91 हो गई है।
- सब्सक्राइबर बेस: सितंबर के अंत तक बीएसएनएल के पास 9.23 करोड़ मोबाइल सब्सक्राइबर्स थे।
कंपनी का लक्ष्य वित्तीय वर्ष 2026 तक अपनी आय को 20% बढ़ाकर ₹27,500 करोड़ तक ले जाने का है।
क्या बीएसएनएल प्राइवेट कंपनियों से मुकाबला कर पाएगा?
विशेषज्ञों का मानना है कि केवल नेटवर्क स्थापित करना पर्याप्त नहीं है। बीएसएनएल के सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं:
- ब्रांड की विजिबिलिटी: प्राइवेट कंपनियों की तुलना में बीएसएनएल का ब्रांड बाजार में कम दिखाई देता है।
- सर्विस क्वालिटी: सेवा की गुणवत्ता के मामले में सरकारी कंपनी अभी भी पीछे है।
विश्लेषक फैसल कावूसा का कहना है कि बीएसएनएल का टर्नअराउंड मुश्किल लगता है क्योंकि सरकारी मदद पर निर्भरता बहुत अधिक है।
अकाउंटिंग में बदलाव
एक दिलचस्प पहलू यह है कि बीएसएनएल ने अपने खर्चों को प्रबंधित करने के लिए अकाउंटिंग के तरीके में बदलाव किया है। पहले कर्मचारियों की सैलरी का खर्च कुल रेवेन्यू का 43% हुआ करता था, जो अब घटकर 37% रह गया है। इसका मतलब यह नहीं है कि सैलरी कम हुई है, बल्कि कंपनी ने नेटवर्क विस्तार के दौरान कर्मचारियों के खर्च को सीधे ‘खर्चे’ में डालने के बजाय ‘कैपिटल वर्क-इन-प्रोग्रेस’ में डालना शुरू कर दिया है।
बीएसएनएल ने स्पष्ट किया है कि टेलीकॉम इंडस्ट्री में बड़े विस्तार के दौरान ओवरहेड खर्चों को इस तरह ‘कैपिटलाइज’ करना एक सामान्य प्रक्रिया है। यह खर्चा प्रॉफिट एंड लॉस (P&L) अकाउंट में तब दिखेगा जब प्रोजेक्ट पूरी तरह से कमाई करना शुरू कर देगा।