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8वें वेतन आयोग में पेंशनरों के लिए खतरे की घंटी: क्या सरकार ने किया भेदभाव?

केंद्र सरकार द्वारा जारी 8वें वेतन आयोग के नोटिफिकेशन ने सरकारी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों में चिंता का माहौल पैदा कर दिया है। क्या सरकार ने 69 लाख पेंशनरों को इस आयोग के लाभ से बाहर रखा है? ऑल इंडिया डिफेंस एम्पलॉई फेडरेशन ने इस मुद्दे पर आवाज उठाई है, यह कहते हुए कि पेंशन में संशोधन बुजुर्गों का अधिकार है। जानें इस विवाद के पीछे की वजहें और क्या है 7वें और 8वें वेतन आयोग के बीच का अंतर।
 

8वां वेतन आयोग: सरकारी कर्मचारियों के लिए नई चुनौतियाँ

8वां वेतन आयोग

8th Pay Commission: केंद्र सरकार ने 3 नवंबर 2025 को आठवें वेतन आयोग (8th CPC) का नोटिफिकेशन जारी किया, जिससे सरकारी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों में उत्साह की जगह चिंता का माहौल बन गया है। हर दशक में आने वाला यह आयोग सरकारी कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर होता है, लेकिन इस बार कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। क्या सरकार ने लगभग 69 लाख केंद्रीय पेंशनरों और उनके परिवारों को इस आयोग के लाभ से बाहर रखा है?

यह चिंता केवल अटकलों पर आधारित नहीं है, बल्कि इसके पीछे ठोस दस्तावेजी सबूत हैं। ऑल इंडिया डिफेंस एम्पलॉई फेडरेशन (AIDEF) ने इस मुद्दे पर तुरंत प्रतिक्रिया दी है। फेडरेशन ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिखकर स्पष्ट किया है कि पेंशनभोगियों के साथ भेदभाव बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उनका तर्क है कि पेंशन में संशोधन बुजुर्गों का अधिकार है, न कि किसी प्रकार की दया।

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आखिर 2014 के 7वें वेतन आयोग और 2025 के 8वें वेतन आयोग में क्या अंतर है? क्यों कहा जा रहा है कि पुराने आयोग में जो सुरक्षा थी, वह इस बार गायब है? आइए, इस मुद्दे को विस्तार से समझते हैं।

1. पेंशन रिअसेसमेंट

आयोग के ‘टर्म्स ऑफ रेफरेंस’ (ToR) को लेकर सबसे बड़ी चिंता है। जब किसी वेतन आयोग का गठन होता है, तो सरकार उसे बताती है कि उसे किन मुद्दों पर विचार करना है।

आठवें वेतन आयोग के रिजॉल्यूशन में ‘पेंशन के पुनर्मूल्यांकन’ (Pension Reassessment) का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है। इसका अर्थ यह है कि आयोग शायद पुराने पेंशनरों की पेंशन बढ़ाने पर विचार नहीं करेगा। हालांकि, इसमें नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) और यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) के तहत आने वाली चिंताओं की समीक्षा की बात कही गई है, लेकिन पुरानी पेंशन व्यवस्था में शामिल लाखों लोगों के लिए स्थिति स्पष्ट नहीं है। यही अस्पष्टता चिंता का कारण है।

2. ग्रेच्युटी और NPS-UPS का पेंच

पेंशन शब्द का उपयोग तो किया गया है, लेकिन उसका संदर्भ बदल गया है। 8वें वेतन आयोग को जो जिम्मेदारी दी गई है, उसके अनुसार वह नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) और हाल ही में आई यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) के दायरे में आने वाले कर्मचारियों की ‘डेथ-कम-रिटायरमेंट ग्रेच्युटी’ (DCRG) की समीक्षा करेगा।

इसके अलावा, टर्म ऑफ रेफरेंस में यह भी कहा गया है कि आयोग उन कर्मचारियों की पेंशन और ग्रेच्युटी की भी समीक्षा करेगा जो NPS और UPS के दायरे से बाहर हैं। लेकिन इसमें ‘मौजूदा पेंशनरों’ की पेंशन बढ़ाने का स्पष्ट आदेश नहीं है, जैसा कि पिछले आयोगों में होता था। यह तकनीकी भाषा का फेर सामान्य पेंशनर के लिए एक खतरे की घंटी जैसा है।

3. 7वें वेतन आयोग में क्या अलग था?

तुलना करने पर तस्वीर और स्पष्ट हो जाती है। 28 फरवरी 2014 को जब 7वें वेतन आयोग का गठन हुआ था, तो सरकार का आदेश बिल्कुल स्पष्ट था। उस समय के रिजॉल्यूशन में लिखा था कि आयोग “पेंशन और अन्य रिटायरमेंट बेनिफिट्स की संरचना तय करने के सिद्धांतों की जांच करेगा।”

7वें वेतन आयोग को यह भी जिम्मेदारी दी गई थी कि वह अपनी सिफारिशें लागू होने की तारीख से पहले रिटायर हो चुके कर्मचारियों (Past Pensioners) की पेंशन की भी समीक्षा करे। इसी आधार पर वन रैंक-वन पेंशन (OROP) जैसी मांगों पर विचार हुआ था। 7वें वेतन आयोग ने यह भी माना था कि 1 जनवरी 2004 के बाद भर्ती हुए कर्मचारी NPS में आते हैं, लेकिन उससे पहले वालों के लिए पुराने नियम लागू थे।

4. भेदभाव का आरोप

इस बार के नोटिफिकेशन में 7वें वेतन आयोग जैसी स्पष्टता का अभाव ही विवाद की असली वजह है। 8वें वेतन आयोग के नोटिफिकेशन में कई बातें हैं, लेकिन ‘पेंशन रिवीजन’ का वह मजबूत वादा नदारद है, जो बुजुर्गों को महंगाई से लड़ने की ताकत देता है।

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AIDEF का कहना है कि अगर आयोग के दायरे में स्पष्ट रूप से पेंशनरों को शामिल नहीं किया गया, तो यह वरिष्ठ नागरिकों के साथ अन्याय होगा। फिलहाल गेंद सरकार के पाले में है। देखना होगा कि वित्त मंत्रालय इस पर क्या स्पष्टीकरण देता है, लेकिन इतना तय है कि जब तक ‘टर्म्स ऑफ रेफरेंस’ में सुधार नहीं होता, देश के 69 लाख पेंशनरों की धड़कनें बढ़ी रहेंगी।