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41 साल बाद मिली न्याय की किरण: गंगा देवी का अदालती संघर्ष

गंगा देवी का अदालती संघर्ष 41 वर्षों तक चला, जिसमें उन्होंने न्याय की तलाश में कई अदालतों के चक्कर लगाए। 1975 में शुरू हुआ उनका मामला अंततः 2018 में अदालत में सही दिशा में बढ़ा, जब अदालत ने उनकी फीस की रसीद खोने की प्रशासनिक गलती को स्वीकार किया। इस कहानी में न्याय की प्रतीक्षा और भारतीय न्याय प्रणाली की धीमी गति का एक गहरा संदेश है। जानिए कैसे गंगा देवी को आखिरकार न्याय मिला और उनके संघर्ष की पूरी कहानी।
 

गंगा देवी का लंबा संघर्ष


आप सभी जानते हैं कि भारतीय न्याय प्रणाली कैसे कार्य करती है। अदालत में किसी भी मामले की सुनवाई तब तक नहीं होती जब तक सभी गवाहों और सबूतों की पूरी जांच नहीं की जाती। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारी न्याय व्यवस्था इतनी धीमी है कि कई बार मामलों में वर्षों तक सुनवाई नहीं होती, और न्याय की प्रतीक्षा में मुकदमा करने वाले लोग ही इस दुनिया को छोड़ देते हैं। ऐसा ही एक मामला गंगा देवी के साथ हुआ, जिन्होंने 41 वर्षों तक न्याय की तलाश में अदालतों के चक्कर लगाए, लेकिन उन्हें कभी न्याय नहीं मिला। हाल ही में, शुक्रवार को अदालत ने इस मामले में गड़बड़ी का पता लगाया और गंगा देवी को न्याय दिलाया।



1975 में, 37 वर्षीय गंगा देवी को जिला जज द्वारा एक संपत्ति अटैचमेंट के खिलाफ नोटिस जारी किया गया था। गंगा ने इस नोटिस के खिलाफ सिविल जज के समक्ष याचिका दायर की। 1977 में, उनके पक्ष में सुनवाई हुई, लेकिन उनकी परेशानियाँ यहीं खत्म नहीं हुईं।


जब उन्होंने अदालत में केस दर्ज कराया, तो उन्हें फीस जमा करने के लिए कहा गया। गंगा ने 312 रुपए की फीस जमा कर दी, लेकिन उन्हें फीस की रसीद नहीं मिली क्योंकि वह कहीं खो गई थी। हालांकि, उन्होंने फीस का भुगतान किया था, लेकिन अदालत में रसीद की अनुपस्थिति के कारण उन्हें फिर से फीस जमा करने के लिए कहा गया, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया।



1975 में 312 रुपए की राशि एक बड़ी रकम मानी जाती थी। गंगा देवी ने फीस जमा कर दी थी, लेकिन रसीद खो जाने के कारण उन्हें दोबारा फीस भरने के लिए कहा गया। इस मामले की सुनवाई 31 अगस्त 2018 को पूरी हुई, और गंगा देवी ने केस जीत लिया। अदालत ने पाया कि प्रशासन की गलती के कारण रसीद नहीं मिली। लेकिन अब गंगा देवी शायद ही कभी कानून पर विश्वास कर पाएंगी। उनके वकील ने बताया कि इस मामले की फाइल 11 जजों के पास गई, लेकिन कोई भी इसे सही तरीके से नहीं देख पाया।



जब मिर्जापुर के सिविल जज ने मामले की जांच की, तो उन्होंने पाया कि गंगा देवी ने फीस जमा कर दी थी, लेकिन प्रशासन की गलती के कारण रसीद खो गई थी। इस मामले की सुनवाई के दौरान गंगा देवी का कोई रिश्तेदार अदालत में मौजूद नहीं था। उनकी फीस की रसीद उनके परिवार को स्पीड पोस्ट से भेजी गई। 41 वर्षों में इस मामले की फाइल 11 जजों के सामने गई, लेकिन किसी ने भी गलती को नहीं पकड़ा। अंततः, गंगा देवी को राहत मिली।