प्रेगनेंसी के दौरान थायरॉइड लेवल में वृद्धि: कारण और नियंत्रण के उपाय
प्रेगनेंसी में थायरॉइड का बढ़ता स्तर
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिसमें डायबिटीज और मोटापे जैसी स्थितियाँ शामिल हैं। कुछ महिलाओं में प्रेगनेंसी के दौरान थायरॉइड की समस्या भी देखी जाती है। यह जानना महत्वपूर्ण है कि गर्भावस्था में थायरॉइड का स्तर क्यों बढ़ता है और क्या यह समस्या बच्चे के जन्म के बाद भी बनी रहती है। प्रेगनेंसी के दौरान थायरॉइड के स्तर में वृद्धि को थायरॉइड डिसफंक्शन कहा जाता है, जो मुख्यतः हार्मोनल परिवर्तनों के कारण होता है।
गर्भावस्था के दौरान थायरॉइड स्टिमुलेटिंग हार्मोन (TSH) का स्तर बढ़ सकता है, जिससे थायरॉइड की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है। कुछ महिलाओं में आयोडीन की कमी भी हो सकती है, जो थायरॉइड हार्मोन के लिए आवश्यक है। आयोडीन की कमी से थायरॉइड डिसफंक्शन हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप वजन बढ़ सकता है और थकान तथा कमजोरी का अनुभव हो सकता है।
क्या यह समस्या बच्चे के जन्म के बाद भी बनी रह सकती है?
गर्भावस्था में थायरॉइड की समस्या से ग्रस्त महिलाओं के मन में यह सवाल उठता है कि क्या यह समस्या बच्चे के जन्म के बाद भी जारी रह सकती है। इस पर दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल की गायनेकोलॉजी विभाग की विशेषज्ञ डॉ. सलोनी चड्ढा बताती हैं कि गर्भावस्था के दौरान थायरॉइड का स्तर बढ़ता है, लेकिन यह हमेशा के लिए नहीं होता।
बच्चे के जन्म के बाद जब महिला के हार्मोन का स्तर सामान्य होता है, तो थायरॉइड भी सामान्य हो सकता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि प्रेगनेंसी के बाद सही खानपान का ध्यान रखा जाए, मानसिक तनाव से बचा जाए, और यदि सामान्य डिलिवरी हुई है, तो डॉक्टर की सलाह पर व्यायाम शुरू किया जाए।
थायरॉइड डिसफंक्शन को नियंत्रित करने के उपाय
गर्भावस्था के दौरान नियमित जांच से थायरॉइड डिसफंक्शन का पता लगाया जा सकता है।
आयोडीन का सेवन आवश्यक है, इसलिए आयोडीन युक्त नमक का उपयोग करें।
मानसिक तनाव से दूर रहें।
संतुलित आहार का ध्यान रखें।
अपने आहार में प्रोटीन और विटामिन शामिल करें।