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जोड़ों के दर्द के लिए बायोलॉजिकल थेरेपी: क्या घिसे हुए घुटने फिर से बन सकते हैं?

जोड़ों के दर्द से परेशान लाखों लोग अब बायोलॉजिकल थेरेपी, विशेषकर पीआरपी थेरेपी, को एक संभावित समाधान के रूप में देख रहे हैं। यह उपचार शरीर की प्राकृतिक उपचार क्षमताओं का उपयोग करता है और बिना सर्जरी के राहत प्रदान करता है। जानें कि यह थेरेपी कैसे काम करती है, इसके लाभ क्या हैं, और क्या यह सभी मरीजों के लिए उपयुक्त है। क्या घिसे हुए घुटने फिर से बन सकते हैं? इस लेख में जानें!
 

जोड़ों के दर्द का समाधान: बायोलॉजिकल थेरेपी

जोड़ों के दर्द की बायोलॉजिकल थेरेपीImage Credit source: musmus culus/DigitalVision Vectors/Getty Images


बायोलॉजिकल थेरेपी: जोड़ों के दर्द की समस्या लाखों लोगों को प्रभावित करती है, जिससे उनकी दैनिक गतिविधियों और स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। उपचार के विकल्पों में, प्लेटलेट-रिच प्लाज्मा (पीआरपी) थेरेपी एक संभावित समाधान के रूप में उभरी है, जो चिकित्सकों और रोगियों दोनों का ध्यान आकर्षित कर रही है। यह थेरेपी शरीर की प्राकृतिक उपचार क्षमताओं का उपयोग करके जोड़ों के दर्द और चोटों का इलाज करती है।


जोड़ों का दर्द एक सामान्य समस्या है, जो उम्र बढ़ने, चोट या गलत तरीके से चलने-बैठने के कारण होती है। लेकिन अब विशेषज्ञ बायोलॉजिकल थेरेपी को एक नई उम्मीद के रूप में देख रहे हैं। दवाओं और फिजियोथेरेपी के अलावा, पीआरपी थेरेपी बिना सर्जरी के जोड़ों के दर्द में राहत प्रदान कर सकती है। यह कहा जा रहा है कि इस थेरेपी से घिसा हुआ कार्टिलेज फिर से बन सकता है और घुटने अपनी पुरानी ताकत हासिल कर सकते हैं। हालांकि, यह जानना जरूरी है कि यह उपचार कितना प्रभावी है और क्या यह सभी मरीजों के लिए उपयुक्त है।


पीआरपी थेरेपी क्या है?


मैक्स अस्पताल के आर्थोपैडिक विभाग के प्रमुख डॉ. अखिलेश यादव के अनुसार, पीआरपी थेरेपी का अर्थ है शरीर के अंगों की मदद से उपचार करना। इसमें मरीज से थोड़ा रक्त लिया जाता है, जिसे सेंट्रीफ्यूज में डालकर प्लेटलेट्स और ग्रोथ फैक्टर को अलग किया जाता है। इस कंसंट्रेटेड पीआरपी घोल को सीधे प्रभावित जोड़ पर लगाया जाता है, जिससे दर्द कम होता है, सूजन घटती है और जोड़ों की मरम्मत तेज होती है।


पीआरपी थेरेपी कैसे कार्य करती है?


प्लेटलेट्स खून जमने और घाव भरने में मदद करते हैं, लेकिन इनमें ग्रोथ फैक्टर्स भी होते हैं जो जोड़ों और टिश्यूज की मरम्मत में सहायक होते हैं। यह प्रक्रिया कोशिकाओं के पुनर्निर्माण को तेज करती है, जिससे दर्द कम होता है और जोड़ों की गतिशीलता में सुधार होता है।


क्या यह जोड़ के दर्द में प्रभावी है?


विशेषज्ञों का कहना है कि हल्के और मध्यम ऑस्टियोआर्थराइटिस में पीआरपी थेरेपी प्रभावी हो सकती है। कई मरीजों ने इस थेरेपी के बाद दर्द में कमी की बात कही है और जोड़ों की कार्यक्षमता में सुधार भी देखा गया है। इसके अलावा, पीआरपी के साइड इफेक्ट्स भी बहुत कम होते हैं, क्योंकि इसमें शरीर का अपना खून इस्तेमाल होता है।


पीआरपी थेरेपी के लाभ


  • सर्जरी की आवश्यकता नहीं
  • साइड इफेक्ट्स बहुत कम
  • मरीज अपनी दैनिक गतिविधियों को आसानी से कर सकते हैं
  • कुछ मामलों में इसका प्रभाव लंबे समय तक बना रहता है
  • घिसे हुए जोड़ फिर से कार्य करने लगते हैं


इसे अपनाने से पहले डॉक्टर से पूरी सलाह लेना आवश्यक है।