विदेश मंत्री जयशंकर की चीन यात्रा: द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति की चर्चा
जयशंकर की चीन यात्रा
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मंगलवार को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के अन्य सदस्यों के साथ बैठक की। उन्होंने सोशल मीडिया पर साझा किया कि उन्होंने राष्ट्रपति शी को भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधों में हालिया प्रगति के बारे में जानकारी दी। जयशंकर सोमवार को एससीओ सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन की दो दिवसीय यात्रा पर पहुंचे। यह यात्रा जून 2020 में गलवान घाटी में हुई सैन्य झड़पों के बाद से उनकी पहली यात्रा है, जिसने द्विपक्षीय संबंधों में तनाव पैदा किया था।
कांग्रेस का बयान
कांग्रेस ने विदेश मंत्री के चीन दौरे का उल्लेख करते हुए कहा कि पड़ोसी देश से जुड़ी चुनौतियों पर गहन चर्चा की आवश्यकता है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 21 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में इस पर सहमति देनी चाहिए। उन्होंने सवाल उठाया कि जब 1962 के युद्ध के दौरान संसद में खुली चर्चा हो सकती थी, तो आज क्यों नहीं?
भारत-चीन संबंधों में सुधार
रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए कहा कि 14 जुलाई, 2025 को चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग के साथ बैठक में विदेश मंत्री ने बताया कि भारत-चीन संबंध पिछले साल अक्टूबर में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद से लगातार बेहतर हो रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि दोनों देशों के लिए संबंधों का सामान्य होना फायदेमंद हो सकता है।
चीन के समर्थन पर सवाल
रमेश ने यह भी कहा कि विदेश मंत्री को याद दिलाना आवश्यक है कि प्रधानमंत्री की पिछले मुलाकात के बाद भारत-चीन संबंधों में क्या घटनाक्रम हुए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि चीन ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तान को समर्थन दिया। कांग्रेस नेता ने कहा कि भारतीय सेना के उप सेना प्रमुख ने स्पष्ट किया है कि भारत ने इस ऑपरेशन में तीन दुश्मनों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जिसमें चीन भी शामिल था।
संसद में चर्चा की मांग
रमेश ने सवाल किया कि विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री कब चीन के मुद्दे पर जनता को विश्वास में लेकर चर्चा करेंगे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पिछले पांच वर्षों से इस मुद्दे पर चर्चा की मांग कर रही है और उम्मीद है कि प्रधानमंत्री इस बार मानसून सत्र में इस पर सहमत होंगे।
1962 के युद्ध की याद
रमेश ने यह भी कहा कि जब नवंबर 1962 में चीन के आक्रमण के दौरान संसद में खुली चर्चा संभव थी, तो आज यह क्यों नहीं हो सकती? उन्होंने कहा कि यह आवश्यक है कि चीन की बढ़ती वैश्विक शक्ति और सुरक्षा खतरों पर राष्ट्रीय सहमति बने, ताकि भारत अपनी सुरक्षा और आर्थिक रणनीति को स्पष्टता के साथ तय कर सके।