मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार में देरी के कारण और शव की देखभाल
मृत्यु और अंतिम संस्कार की प्रक्रिया
आप सभी जानते हैं कि हर जीवित प्राणी को एक दिन मृत्यु का सामना करना पड़ता है। फिर भी, मृत्यु एक ऐसा विषय है जिस पर लोग खुलकर बात करने से कतराते हैं। हिंदू धर्म में, मृत्यु के बाद शव का अंतिम संस्कार एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।
आपने देखा होगा कि सूर्यास्त के बाद यदि किसी की मृत्यु होती है, तो उसका अंतिम संस्कार अगले दिन किया जाता है। इस प्रक्रिया के पीछे कई धार्मिक मान्यताएँ हैं। आइए, हम इस विषय पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार में देरी के तीन प्रमुख कारण
1. यदि किसी की मृत्यु सूर्यास्त के बाद होती है, तो शव को रातभर घर में रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि रात में अंतिम संस्कार करने से आत्मा को शांति नहीं मिलती और वह असुर या पिशाच की योनि में जन्म लेती है।
2. पंचक काल के दौरान यदि किसी की मृत्यु होती है, तो शव का अंतिम संस्कार नहीं किया जा सकता। पंचक काल समाप्त होने का इंतजार किया जाता है, तब तक शव को घर में रखा जाता है।
3. हिंदू मान्यता के अनुसार, किसी व्यक्ति का अंतिम संस्कार उसके पुत्र द्वारा किया जाना चाहिए। यदि बेटा या बेटी दूर रहते हैं, तो शव को उनके आने तक घर में रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि उनके द्वारा अंतिम संस्कार करने से मृत आत्मा को शांति मिलती है।
शव को अकेला न छोड़ने के कारण
शव को अकेला न छोड़ने का एक कारण यह है कि कुत्ते और बिल्ली जैसे जानवर उसे खरोंच सकते हैं। गरुड पुराण के अनुसार, ऐसी स्थिति में मृत आत्मा को यमलोक में यातना सहनी पड़ती है।
इसके अलावा, यदि शव को अकेला छोड़ दिया जाए, तो उसमें से दुर्गंध आने लगती है। इसलिए, यह आवश्यक है कि कोई व्यक्ति शव के पास बैठे और चारों ओर अगरबत्ती जलाए ताकि दुर्गंध फैलने से रोका जा सके।
मृत शरीर की सुरक्षा और आत्मा की शांति
इसके अतिरिक्त, मृत शरीर को अकेला नहीं छोड़ा जाता क्योंकि यह माना जाता है कि मृत व्यक्ति की आत्मा वहां भटकती है। इससे बुरी आत्माओं का साया पड़ सकता है। यही कारण है कि रात में शव को अकेला नहीं छोड़ा जाता है।