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महाकुंभ 2025 में नागा साधुओं की नई प्रक्रिया और जीवनशैली

प्रयागराज में महाकुंभ 2025 की तैयारी जोरों पर है, जिसमें नागा साधुओं की तपस्या और जीवनशैली पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। दिगंबर विजय पुरी, एक नागा साधु, ने बताया कि अब नागा साधु बनने की प्रक्रिया में आयुर्वेदिक औषधियों का उपयोग किया जाता है, जो कामवासना पर नियंत्रण पाने में मदद करती हैं। जानें इस प्रक्रिया के बारे में और साधुओं के जीवन के रहस्यों को।
 

महाकुंभ की तैयारी और नागा साधुओं की तपस्या


महाकुंभ 2025 में नागा साधुओं की भूमिका: प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन 13 जनवरी से शुरू होगा, और इस धार्मिक मेले के प्रति श्रद्धा का उत्साह पहले से ही देखने को मिल रहा है। इस अवसर पर देशभर से साधु-संन्यासी एकत्रित हो रहे हैं। नागा साधुओं की तपस्या और उनके जीवन का रहस्य हमेशा से लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। हाल ही में, हमने एक नागा साधु दिगंबर विजय पुरी से मुलाकात की, जिन्होंने अपने शरीर पर सवा लाख रुद्राक्ष धारण किए हुए हैं। उन्होंने नागा साधु बनने की नई प्रक्रिया और उनके जीवनशैली के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारी साझा की।


दिगंबर विजय पुरी मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर से प्रयागराज आए हैं। उन्होंने बताया कि नागा साधु बनने के लिए 12 से 13 वर्षों की कठिन तपस्या और संयम की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा, “हमारा जीवन त्याग और तपस्या का है। भस्म ही हमारा वस्त्र है, और रुद्राक्ष हमें मानसिक शांति प्रदान करता है। मैंने अपने शरीर पर 35 किलो वजनी सवा लाख रुद्राक्ष धारण किए हैं।”


उन्होंने आगे बताया कि पहले नागा साधु बनने की प्रक्रिया में शारीरिक झटके दिए जाते थे, जिससे कई साधुओं की मृत्यु हो जाती थी। लेकिन अब, यह प्रक्रिया आयुर्वेदिक औषधियों की मदद से की जाती है। ये औषधियां कामवासना पर नियंत्रण पाने में सहायक होती हैं।


“कामवासना से मुक्ति मन को नियंत्रित करने पर निर्भर करती है। आयुर्वेदिक दवाओं के साथ-साथ मन को आत्मा की ओर केंद्रित करना सबसे महत्वपूर्ण है,” बाबा ने कहा।