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भारत की मिट्टी में नाइट्रोजन और कार्बन की कमी: कृषि पर गंभीर प्रभाव

भारत की मिट्टी में नाइट्रोजन और कार्बन की कमी एक गंभीर समस्या बनती जा रही है, जो कृषि उत्पादन को प्रभावित कर सकती है। नई रिपोर्ट के अनुसार, देश की मिट्टी में महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की कमी हो रही है, जिससे फसलों की गुणवत्ता और उत्पादन पर खतरा मंडरा रहा है। इस स्थिति के पीछे के कारणों और संभावित समाधानों पर चर्चा की गई है। क्या भारत की कृषि प्रणाली इस संकट का सामना कर पाएगी? जानें पूरी जानकारी इस लेख में।
 

भारत की मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी

भारत की मिट्टी में नाइट्रोजन और कार्बन की भारी कमी

भारत को एक कृषि प्रधान राष्ट्र माना जाता है, जहां खेत, फसल और किसान हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। किसान को ‘अन्नदाता’ और मिट्टी को ‘मां’ मानने की परंपरा आज भी जीवित है। लेकिन अब चिंता का विषय यह है कि देश की मिट्टी गंभीर समस्याओं का सामना कर रही है। नई अध्ययन के अनुसार, भारत की मिट्टी में नाइट्रोजन और ऑर्गेनिक कार्बन जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की मात्रा खतरनाक स्तर तक घट गई है।

दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) ने देशभर की मिट्टी के नमूनों का विश्लेषण किया है। रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 64 प्रतिशत मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी है, जबकि 48.5 प्रतिशत मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा बेहद कम है। इसका मतलब है कि मिट्टी में वह ताकत नहीं बची है, जिसके सहारे फसलें उगें और हमें पोषण दें। इस स्थिति ने वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं और किसानों को चिंतित कर दिया है।


महत्वपूर्ण अध्ययन और इसके परिणाम

स्टडी का महत्व

सॉइल हेल्थ कार्ड योजना 2015 में शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य देशभर की मिट्टी की जांच करना और किसानों को उनके खेत की मिट्टी के पोषक तत्वों की जानकारी देना था। CSE ने इस योजना से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया है। 2023 से 2025 के बीच 1.3 करोड़ मिट्टी के नमूनों की जांच की गई, जिसके आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई।

यह रिपोर्ट राजस्थान के निमली में अनिल अग्रवाल एनवायरनमेंट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में आयोजित एक राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रस्तुत की गई। रिपोर्ट का शीर्षक है, ‘सस्टेनेबल फूड सिस्टम्स: एन एजेंडा फॉर क्लाइमेट-रिस्क्ड टाइम्स’, जो केवल आंकड़े नहीं बल्कि भविष्य की चेतावनी भी देती है।


नाइट्रोजन की कमी के कारण

नाइट्रोजन की कमी का कारण

पिछले कुछ दशकों में खेती मुनाफे की दौड़ में शामिल हो गई है। किसान का मानना है कि अधिक उत्पादन के लिए अधिक खाद डालना आवश्यक है। रासायनिक NPK खाद का उपयोग बढ़ गया है, लेकिन मिट्टी अब इसे सोख नहीं पा रही है। यह खाद मिट्टी की संरचना को सुधारने के बजाय उसे नुकसान पहुंचा रही है।

रासायनिक खाद पौधों को तात्कालिक ऊर्जा देती है, लेकिन यह मिट्टी में मौजूद लाभदायक जीवों को नष्ट कर देती है, जो मिट्टी की उपजाऊता के लिए आवश्यक हैं। जब ये जीव खत्म होते हैं, तो मिट्टी जैविक रूप से कमजोर होने लगती है।


ऑर्गेनिक कार्बन का महत्व

ऑर्गेनिक कार्बन की भूमिका

ऑर्गेनिक कार्बन को मिट्टी की आत्मा माना जाता है। यह मिट्टी को भुरभुरा बनाता है और बारिश का पानी रोकता है। यह मिट्टी में हवा और नमी के संतुलन को बनाए रखता है और पौधों की जड़ों तक पोषण पहुंचाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की मिट्टी हर साल 6-7 टेराग्राम कार्बन को रोक सकती है। लेकिन अगर ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा घटती है, तो यह क्षमता धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी।


समस्या का समाधान

समाधान और चुनौतियाँ

इस योजना में मिट्टी के 12 रासायनिक तत्वों को मापा जाता है, लेकिन मिट्टी की सेहत केवल रसायनों से नहीं समझी जा सकती। मिट्टी का जीवन उसकी भौतिक संरचना और जैविक सक्रियता से तय होता है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन ने भी चेतावनी दी है कि मिट्टी का मूल्यांकन तभी पूरा माना जाएगा जब उसकी भौतिक और जैविक स्थिति को भी शामिल किया जाए।

हालांकि, बायोचार, जैविक खेती और फसल चक्र के नियमों को अपनाने से स्थिति में सुधार हो सकता है, लेकिन ये उपाय अभी तक खेतों तक नहीं पहुंच पाए हैं।