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प्रदूषण और बच्चों में ऑटिज़्म का बढ़ता खतरा: जानें कारण और बचाव के उपाय

प्रदूषण का बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर ऑटिज़्म के खतरे में वृद्धि के रूप में। गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों को समझना आवश्यक है। जानें कि कैसे प्रदूषण से बचा जा सकता है और बच्चों की इम्यूनिटी को मजबूत किया जा सकता है। इस लेख में प्रदूषण के प्रभाव और सुरक्षा उपायों पर विस्तृत जानकारी दी गई है।
 

प्रदूषण का बच्चों पर प्रभाव

प्रदूषण से ऑटिज़्म का खतराImage Credit source: Getty Images


प्रदूषण का प्रभाव केवल फेफड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह गर्भ में पल रहे बच्चों के लिए भी गंभीर खतरा उत्पन्न कर सकता है। हाल के अध्ययन से पता चला है कि प्रदूषण के कारण बच्चों में ऑटिज़्म का जोखिम बढ़ रहा है। बच्चों के फेफड़े और इम्यून सिस्टम अभी विकसित हो रहे होते हैं, जिससे वे प्रदूषण के कणों और हानिकारक गैसों को जल्दी अवशोषित कर लेते हैं। गर्भवती महिलाएं भी इन हानिकारक तत्वों से प्रभावित होती हैं, जिससे उनके शरीर में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों का स्तर प्रभावित हो सकता है। उच्च AQI (एयर क्वालिटी इंडेक्स) के संपर्क में रहने से मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसमें सांस लेने में कठिनाई, कमजोरी और न्यूरोडेवलपमेंट से जुड़े जोखिम शामिल हैं।


प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क में रहने से गर्भवती महिलाओं और बच्चों में कई स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। महिलाओं में सांस की समस्याएं, थकान, इम्यून सिस्टम की कमजोरी और हृदय संबंधी जोखिम बढ़ सकते हैं। बच्चों पर प्रदूषण का प्रभाव उनके मानसिक और शारीरिक विकास पर पड़ता है, जिससे उनकी सीखने की क्षमता में कमी, पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई और व्यवहार में बदलाव आ सकते हैं। इसके अलावा, हवा में मौजूद हानिकारक कण गर्भ में बच्चे के न्यूरोडेवलपमेंट को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे जन्म के बाद ऑटिज़्म और अन्य न्यूरोलॉजिकल समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।


प्रदूषण का प्रभाव और बचाव के उपाय

प्रदूषण प्रेगनेंट महिला और बच्चे के विकास को कैसे प्रभावित करता है?


डॉ. शेफाली गुलाटी, चाइल्ड न्यूरोलॉजी डिवीजन, एम्स के अनुसार, प्रदूषण में मौजूद PM2.5, NO₂ और अन्य हानिकारक कण शरीर में प्रवेश कर दिमाग की सुरक्षा को कमजोर कर सकते हैं। ये कण गर्भवती महिला के शरीर में प्लेसेंटा के माध्यम से बच्चे तक पहुंच जाते हैं, जिससे बच्चे के दिमाग के विकास में बाधा उत्पन्न होती है। इसके परिणामस्वरूप बच्चों में न्यूरोडेवलपमेंट की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।


लंबे समय तक प्रदूषण के संपर्क में रहने वाले बच्चों में ऑटिज़्म का खतरा बढ़ जाता है। ऑटिज़्म एक ऐसी स्थिति है जिसमें बच्चे को बातचीत, व्यवहार और सामाजिक संपर्क में कठिनाई होती है। इसके अलावा, दिमाग में ऑक्सीडेटिव तनाव और सूजन बढ़ने से आगे चलकर अल्ज़ाइमर जैसे लक्षण भी विकसित हो सकते हैं, जिनमें याददाश्त में कमी, ध्यान में कमी और सोचने-समझने की क्षमता प्रभावित होना शामिल है।


कैसे करें बचाव?


हवा की गुणवत्ता (AQI) पर ध्यान दें और प्रदूषण के समय बाहर जाने से बचें।


घर में एयर प्यूरीफायर या हरे पौधे रखें।


गर्भवती महिलाओं और बच्चों को मास्क पहनाएं, विशेषकर धूल और धुएं वाले क्षेत्रों में।


बाहर खेलने या लंबी सैर से बचें जब AQI खराब हो।


पौष्टिक आहार लें और बच्चे की इम्यूनिटी को मजबूत रखें।