धुरवा आदिवासी समाज की अनोखी विवाह परंपराएं
धुरवा समाज की अनोखी शादी की रस्में
भारत में कई अद्भुत परंपराएं हैं, जो सदियों से चली आ रही हैं और गर्व का विषय बनी हुई हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र का धुरवा आदिवासी समाज अपनी अनूठी विवाह परंपरा के लिए जाना जाता है, जो इस क्षेत्र की गहरी सांस्कृतिक जड़ों का प्रतीक है।
धुरवा समाज की अनोखी शादी की रस्में
भारत के विभिन्न धर्मों और समुदायों की अपनी विशेष मान्यताएं और परंपराएं होती हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में रहने वाला धुरवा आदिवासी समाज भी अपनी अनोखी परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। इस समाज में विवाह के कुछ ऐसे अनोखे तरीके हैं, जो लोगों को चौंका देते हैं। जबकि अधिकांश समाजों में भाई-बहन के रिश्ते को पवित्र माना जाता है, धुरवा समाज में यह रिश्ता विवाह का आधार बनता है। यहाँ ममेरे, चचेरे और फुफेरे भाई-बहनों के बीच विवाह किया जाता है। धुरवा समुदाय का मानना है कि इससे समाज में एकता बनी रहती है और अनजान परिवारों के साथ विवाद की संभावना कम होती है।
नियम तोड़ने पर लगता है जुर्माना
यह एक प्राचीन सामाजिक परंपरा है, जिसे मानना अत्यंत आवश्यक समझा जाता है। यदि कोई युवा इसे नहीं मानता है, तो समाज इसे नियम का उल्लंघन मानता है। ऐसे मामलों में, उस व्यक्ति से जुर्माना लिया जाता है ताकि यह परंपरा कमजोर न पड़े और बनी रहे।
पानी को साक्षी मानकर होती है शादी
धुरवा समाज की शादियों की एक विशेषता यह है कि वे अग्नि के बजाय पानी को विवाह का साक्षी मानते हैं। विवाह की रस्मों के दौरान, दूल्हा-दुल्हन पर किसी नदी या जल स्रोत का पानी छिड़का जाता है। यह परंपरा उनकी गहरी प्रकृति आस्था को दर्शाती है। उनका मानना है कि पानी जीवन का आधार है, इसलिए विवाह के पवित्र रिश्ते में इसे गवाह होना चाहिए।
दहेज प्रथा पर प्रतिबंधित
धुरवा समुदाय ने दहेज प्रथा को पूरी तरह से समाप्त कर दिया है। उनका मानना है कि दहेज से समाज में असमानता और दिखावा बढ़ता है। इसलिए, इस समुदाय में शादियाँ बहुत साधारण तरीके से, बिना किसी शोर-शराबे और अधिक खर्च के की जाती हैं। यह सरल तरीका समाज में समानता और आर्थिक सादगी बनाए रखने का एक उदाहरण है।
कानूनी रूप से लड़के की शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल और लड़की की 18 साल निर्धारित है, फिर भी बाल विवाह की प्रथा आज भी एक बड़ी चिंता का विषय है। कई स्थानों पर लोग परंपरा के नाम पर कम उम्र के बच्चों की शादी कर रहे हैं, जो कि कानून का उल्लंघन है। परंपराओं को लेकर समाज में विभिन्न राय बन गई हैं। नई पीढ़ी इन रीति-रिवाजों को समय के साथ बदलने या सुधारने की बात करती है, जबकि बुजुर्ग इन्हें अपनी संस्कृति और पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं।