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दुर्लभ मोलर प्रेग्नन्सी का सफल उपचार: केवल नौ मामले दर्ज

जयपुर में एक महिला की मोलर प्रेग्नन्सी का मामला सामने आया है, जो कि पिछले सिजेरियन सेक्शन के निशान पर विकसित हुआ। इस दुर्लभ स्थिति में, डॉ. प्रियंका ठाकुर शर्मा ने सफलतापूर्वक महिला की जान बचाई और उनके गर्भाशय को पुनः स्वस्थ किया। विश्व में ऐसे केवल नौ मामले ही दर्ज हैं। जानें इस जटिल स्थिति का उपचार कैसे किया गया और इसके पीछे की कहानी।
 

जयपुर में मोलर प्रेग्नन्सी का अनोखा मामला

जयपुर। महिलाओं में मोलर प्रेग्नन्सी एक अत्यंत दुर्लभ स्थिति है, जिसमें पिछले सिजेरियन सेक्शन के निशान पर यह घटना होना और भी कम देखने को मिलता है। विश्व स्तर पर इस प्रकार के केवल नौ मामले ही रिपोर्ट किए गए हैं। राजस्थान अस्पताल, जयपुर की डॉ. प्रियंका ठाकुर शर्मा, जो एक कंसल्टेंट गायनेकोलॉजिस्ट हैं, ने एक महिला मरीज का सटीक निदान कर न केवल उनकी जान बचाई, बल्कि उनके गर्भाशय को भी पुनः स्वस्थ किया।



डॉ. प्रियंका ने बताया कि जब मरीज उनके पास आई, तब उन्हें अत्यधिक रक्तस्त्राव, कम रक्तचाप और निरंतर पेट दर्द की समस्या थी। मरीज ने बताया कि लगभग दो महीने पहले उनका गर्भपात हुआ था, और इससे पहले भी ऐसा ही एक मामला हुआ था। उनके दो बच्चे हैं, जो ऑपरेशन से हुए हैं और स्वस्थ हैं।
प्रारंभिक जांच में कम हीमोग्लोबिन, कम रक्तचाप और उच्च पल्स रेट के कारण पेट में खून भरने की संभावना जताई गई। डॉ. प्रियंका ने कहा, "मुझे मरीज में मोलर प्रेग्नन्सी होने की आशंका थी, अल्ट्रासाउंड से यह पुष्टि हुई, जिसके बाद सीटी एंजियोग्राफी की गई। यह एक उच्च जोखिम वाली स्थिति थी, क्योंकि ऑपरेशन में अत्यधिक रक्तस्राव की संभावना थी।"
इसके बाद, सहमति और समझाइश की प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद, ऑपरेशन से पहले गर्भाशय को रक्त पहुंचाने वाली दोनों वाहिनियों को बंद किया गया, और दो यूनिट रक्त चढ़ाया गया। जब ऑपरेशन किया गया, तो गर्भाशय में दो लीटर रक्त पाया गया और पुराना स्कार भी कटा हुआ था।


डॉ. प्रियंका ने बताया कि, टूटे हुए टिश्यू और जमा हुआ रक्त निकालने के बाद गर्भाशय को परत दर परत ठीक किया गया। इस प्रकार, प्रक्रिया सफलतापूर्वक संपन्न हुई। मरीज का सीरम बीएचसीजी का स्तर ऑपरेशन से पहले 55000 से घटकर 188 हो गया। बायोप्सी से आंशिक हाइडैटिडिफॉर्म मोल की जानकारी मिली। फॉलो अप में मरीज की रिकवरी बहुत अच्छी और तेज रही।
डॉक्टर ने संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि इस 34 वर्षीय महिला का गर्भाशय निकालना एक अनुचित विकल्प होता, और सही समय पर निदान, प्रबंधन और परिजनों की जागरूकता ने जटिलताओं को कम किया। संभवतः उन्हें मौत के मुँह से भी बचा लिया गया।