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जन्माष्टमी 2025: मथुरा-वृंदावन में उत्सव का महत्व और विशेष परंपराएं

जन्माष्टमी 2025 का पर्व मथुरा और वृंदावन में विशेष धूमधाम से मनाया जाएगा। जानें इस दिन का महत्व, अष्टमी तिथि का समय और बांके बिहारी मंदिर में होने वाली विशेष मंगला आरती की परंपरा। इस धार्मिक उत्सव के दौरान हजारों भक्त दर्शन के लिए उमड़ते हैं।
 

जन्माष्टमी का पर्व


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था। इस दिन को जन्माष्टमी या गोकुलाष्टमी के नाम से पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन मथुरा और वृंदावन में इसका उत्सव विशेष महत्व रखता है। मथुरा, जहां श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, और वृंदावन, जहां उन्होंने अपना बचपन बिताया, इस पर्व को भव्यता के साथ मनाते हैं।


अष्टमी तिथि का समय

पंचांग के अनुसार, 2025 में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि 15 अगस्त, शुक्रवार की रात 11:50 बजे प्रारंभ होगी और 16 अगस्त, शनिवार की रात 09:34 बजे समाप्त होगी। चूंकि अष्टमी का सूर्योदय 16 अगस्त को होगा, इसलिए मथुरा-वृंदावन सहित पूरे देश में जन्माष्टमी का पर्व 16 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन वृद्धि, ध्रुव, ध्वजा और श्रीवत्स नाम के चार शुभ योग पूरे दिन रहेंगे।


मथुरा-वृंदावन में जन्माष्टमी का महत्व

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ और उनका बचपन वृंदावन में बीता, इसलिए यहां जन्माष्टमी का पर्व अत्यधिक धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। यहां के श्रीकृष्ण मंदिरों में विशेष सजावट की जाती है। बांके बिहारी मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर और अन्य प्राचीन मंदिरों में हजारों भक्त दर्शन के लिए आते हैं।


बांके बिहारी मंदिर में विशेष मंगला आरती

मथुरा-वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में एक विशेष परंपरा है। यहां सालभर मंगला आरती नहीं होती, केवल जन्माष्टमी पर इसे संपन्न किया जाता है। मान्यता है कि भगवान बांके बिहारी रात में राधा रानी और गोपियों के साथ रास रचाते हैं और सुबह देर तक विश्राम करते हैं, इसलिए सामान्य दिनों में आरती नहीं होती। जन्माष्टमी के दिन विशेष रूप से तड़के मंगला आरती होती है, जिसे देखने के लिए श्रद्धालु देश-विदेश से आते हैं।