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जगन्नाथ मंदिर: इतिहास, परंपराएं और विवाद

जगन्नाथ मंदिर, जो भगवान विष्णु का एक पवित्र स्थल है, का इतिहास और विवादों से भरा हुआ है। इस लेख में जानें कि कैसे इंदिरा गांधी को मंदिर में प्रवेश नहीं मिला और विदेशी आक्रमणों ने इस मंदिर को कैसे प्रभावित किया। जानें इस अद्भुत मंदिर की पौराणिकता और उसकी परंपराएं।
 

भगवान जगन्नाथ का महत्व

भगवान विष्णु, जो शांति और समृद्धि के प्रतीक हैं, जगन्नाथपुरी में निवास करते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह स्थान वैकुंठ लोक का एक रूप है। भारत के हर हिंदू की इच्छा होती है कि वह एक बार इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन करे।


जगन्नाथ मंदिर का इतिहास

उत्कल क्षेत्र के राजा इंद्र देव और रानी गुंडजा ने भगवान नील माधव के लिए इस मंदिर का निर्माण किया। देवर्षि नारद ने इस कार्य में सहायता की। जब प्राण प्रतिष्ठा का समय आया, तो नारद ने सुझाव दिया कि इसे ब्रह्मा जी को करना चाहिए। राजा ने ब्रह्मा जी को आमंत्रित किया, लेकिन इस दौरान कई सदियाँ बीत गईं और मंदिर रेत में दब गया। एक समुद्री तूफान ने मंदिर के शिखर को बाहर ला दिया, जिससे पुनः प्राण प्रतिष्ठा संभव हो सकी।


इंदिरा गांधी का मंदिर में प्रवेश

1984 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया। यह नियम केवल सनातन हिंदुओं के लिए है। इंदिरा गांधी का विवाह एक पारसी से हुआ था, जिससे उन्हें मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं मिली।


गैर हिंदुओं का प्रवेश प्रतिबंध

जगन्नाथ मंदिर में केवल सनातन हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति है। 2005 में थाईलैंड की रानी और 2006 में एक स्विस नागरिक को भी इसी कारण से प्रवेश नहीं मिला।


विदेशी आक्रमण और मंदिर का इतिहास

जगन्नाथ मंदिर को 20 बार विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा लूटा गया। मुस्लिम सुल्तानों ने बार-बार इस मंदिर पर हमले किए, लेकिन पुजारियों ने भगवान की मूर्तियों को सुरक्षित रखा। इन हमलों के कारण भगवान जगन्नाथ को 144 वर्षों तक मंदिर से दूर रहना पड़ा।